रायपुर, देश के 15 राज्यों से विभिन्न जन आंदोलनों के साथियों ने कल दिनांक 29 जून 2022 को छत्तीसगढ़ के सरगुजा जिले के ग्राम हरिहरपुर धरना स्थल पर पहुँचकर हसदेव अरण्य क्षेत्र में कोयला खदान की प्रक्रियाओं और स्थानीय समुदाय से पूरी समस्या के बारे में जाना और खनन के खिलाफ चल रहे सतत आंदोलन को अपने संघर्ष की ओर से समर्थन दिया l हरिहरपुर तक की यात्रा के दौरान बिलासपुर में हसदेव अरण्य बचाने चल रहे अनिश्चितकालीन आन्दोलन के धरना स्थल में भी पहुंचे और सभा को संबोधित किया| जल, जंगल, जमीन, आजीविका और पर्यावरण को बचाने के लिए हसदेव अरण्य के लोग और उनकी ग्रामसभाए पिछले एक दशक से आंदोलनरत हैंl
आयोजित सम्मेलन में महिलाओं की प्रमुखता के साथ हजारों की संख्या में हसदेव अरण्य के लोग एकजुट हुए जिसमे 15 ग्राम पंचायतों के सरपंच भी मौजूद रहे l प्रभावित गाँव के लोगों ने कहा कि पुरखों से हम इस जंगल जमीन पर निर्भर है l ये जंगल सिर्फ हमारे जीवन के लिए नही बल्कि पूरे देश के लिए आवश्यक है l ग्राम घाट्बर्रा के सरपंच जयनंदन पोर्ते ने कहा कि खदान से उजड़ने वालो का हस्र हमने देखा है जंगल -जमीन, गाँव और पहचान सब कुछ ख़त्म हो गया l हमें ऐसा विकास नही चाहिए l आंदोलनकारी सुनीता पोर्ते ने कहा कि कम्पनी के दिए पैसे पेड़ में लगे पत्तो की तरह है जो झड़ कर जमीन के गिर जाते है और उड़ जाते है, लेकिन हमारी जमीन और जंगल हमें हमेशा साथ देंगे l
लगभग 1700 वर्ग किलोमीटर का “हसदेव अरण्य” छत्तीसगढ़ ही नही बल्कि मध्यभारत का एक समृद्ध वन क्षेत्र हैं l यह जैव विविधता से परिपूर्ण एवं वन्यजीव संरक्षण अधिनियम की श्रेणी I के 21 महत्वपूर्ण वन्य जीवों का रहवास और माइग्रेटरी कॉरीडोर भी है l यह वन क्षेत्र छत्तीसगढ़ की जीवनदायनी नदी हसदेव का जलागम क्षेत्र भी है जिससे चार जिलों की लाखो हेक्टेयर कृषि भूमि सिंचित होती हैं l अपनी इन्ही विशेषताओं के कारण इस सम्पूर्ण वन क्षेत्र को वर्ष 2010 में खनन से मुक्त रखने का निर्णय करते हुए इसे ‘नो – गो’ क्षेत्र घोषित किया गया था परन्तु सिर्फ कार्पोरेट मुनाफे के लिए इसे खोलते हुए कोयला खनन की इजाजत दी जा रही है l
प्रेस वार्ता को संबोधित करते हुए सामाजिक कार्यकर्त्ता मेधा पाटकर ने कहा “हसदेव अरण्य” में पूरे देश का मात्र 2 प्रतिशत और छत्तीसगढ़ के कुल कोयले का भंडार का मात्र 10 प्रतिशत कोयला मोजूद है जिसे छोड़ने पर भी कोई कोयला संकट नही होगा l देश के कुल कोयले का भंडार 3.2 लाख मीट्रिक टन है और हमारी जरुरत प्रतिवर्ष मात्र 2 हजार मीट्रिक टन है l यदि कोल इण्डिया अपनी वर्तमान संचालित और स्वीकृति प्राप्त खदानों को पूर्ण क्षमताओं पर उत्पादन करें तो MDO अनुबंध, निजी क्षेत्र या कोयले के आयात की कोई जरुरत नही होगी l हमारे वर्तमान पॉवर प्लांट भी अपनी पूरी क्षमता (PLF ) पर उत्पादन करें तो नए पॉवर प्लांटो की भी स्थापना की जरुरत नही है l
मेधा जी ने कहा कि पूरी दुनिया जलवायु परिवर्तन के संकट से जूझ रही है l जब धरती पर जीवन का अस्तित्व ही खतरे में है उस स्थिति में हम हसदेव अरण्य जैसे समृद्ध वनों का विनाश कैसे कर सकते हैं ? COP26 में सभी देशो ने कोयले के उपयोग से पीछे हटने का संकल्प लिया है, जिसमे हमारे प्रधानमंत्री ने भी वर्ष 2030 तक 50 प्रतिशत ऊर्जा की जरूरतों को वैकल्पिक स्रोतों से पूरा करने का निर्णय लिया है l उस पर अमल करने के बजाए नए कोल ब्लाको को सहमती देना सत्ता का दोहरा रवैया प्रदर्शित करता है l
मेधा जी ने कहा कि प्राकृतिक संसाधन, समृद्धि और जीवन की कीमत चुकाकर खनन को कैसे मंजूर किया जा सकता है जिसमे प्रकृति आधारित जीवन निर्वाह करने वाले आदिवासी समुदाय का अस्तित्व ही ख़त्म हो जाये l इसके साथ ही मेधा जी ने राहुल गाँधी जी के उस बयान की भी प्रशंसा की जिसमे उन्होंने हसदेव अरण्य के आन्दोलन को जायज ठहराते हुए खनन की अनुमतियो को गलत करार दिया था l उन्होंने कहा कि हम उम्मीद करते हैं कि राहुल जी अपनी इस महत्वपूर्ण भूमिका और निर्णय से पीछे नही हटेंगे l
कांग्रेस ने ही केंद्र की सत्ता में रहते हुए जनपक्षीय कानून पेसा अधिनियम 1996, वनाधिकार मान्यता कानून 2006 और भूमि अधिग्रहण कानून 2013 को बनाया है l छत्तीसगढ़ के कांग्रेस की सरकार उम्मीद है कि इन कानूनों का पालन सुनिश्चित करेगी1
प्रेस वार्ता को संबोधित करते हुए किसान नेता पूर्व विधायक डॉ. सुनीलम ने कहा कि हसदेव अरण्य की ग्राम सभाओं ने कभी भी खनन की सहमती प्रदान नहीं की है1 परसा कोल ब्लॉक की जो वन भूमि डायवर्सन स्वीकृति हासिल की गई है वह ग्राम सभा के फर्जी प्रस्ताव पर आधारित है1 देश में उदाहरण है चाहे प्लाचीमाड़ा (केरल) हो या नियमगिरी (ओडिशा) ग्राम सभा के अधिकार ही सर्वोच्च है इसी आधार पर न्यायालय द्वारा इन परियोजनाओं को रद्द किया गया था1 इसी तारतम्य में केंद्र और राज्य सरकार को ग्रामसभा के निर्णय का पालन करते हुए हसदेव अरण्य की खनन परियोजनाओं को पूर्णतः निरस्त करना चाहिए1 डॉ. सुनीलम ने कहा कि केंद्र की मोदी सरकार एक तरफ काले कृषि कानून लाकर अडानी अम्बानी को पूरा कृषि क्षेत्र सुपुर्द करना चाहती है दूसरी ओर कोयला खनन में MDO जैसे अनुबंधों के द्वारा कोल इंडिया को ख़त्म करके अडानी के हाथ में कोयला खनन पर एकाधिकार दे रही है| सत्ता को यह नहीं भूलना चाहिए कि जिस तरह देश के किसानों ने मजबूर किया है काले कानूनों को वापस लेने के लिए उसी तरह हसदेव के साथ आज देश भर की जन आंदोलनों एवं नागरिक समाज की ताकते खड़ी हुई है और अडानी के मुनाफे के लिए हसदेव को उजाड़ने की कोशिशों से राज्य को पीछे हटना पड़ेगा1
विभिन्न राज्यों से आये प्रतिनिधि मण्डल में सर्वहारा जन आन्दोलन से उल्का महाजन, लोक संघर्ष मोर्चा से प्रतिभा शिंदे, ओडिशा जिंदाबाद संगठन से त्रिलोचन पूँजी, मध्य प्रदेश किसान संघर्ष समिति से डॉ.आराधना भार्गव, लोकाधिकार संगठन दिल्ली से धर्मेन्द्र, जनजागरण शक्ति संगठन से सोहिनी, बिहार, अवध पीपल फोरम दे गुफरान भाई|
प्रेस वार्ता में वक्ताओं ने कहा कि जरूरत पड़ी तो हम हसदेव के मुद्दे को कांग्रेस के केन्द्रीय नेतृत्व तक भी ले जाने की कोशिश करेंगे1
भवदीय
मेधा पाटकर, नर्मदा बचाओ आन्दोलन
डॉ. सुनीलम, पूर्व विधायक