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सामाजिक बहिष्कार जैसी कुरीतियों के खिलाफ विधानसभा सत्र में बनाया जाए सक्षम कानून – डॉ. दिनेश

रायपुर। बुधवार से छत्तीसगढ़ का मानसून सत्र शुरू होना वाला है। सत्र काफी हंगामेदार होने की बात सामने आ रही है। वहीं इस सत्र में सामाजिक बहिष्कार जैसी सामाजिक कुरीति के खिलाफ सक्षम कानून बनाए जाने की मांग की जा रही है।

मामले में अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति के अध्यक्ष डॉ. दिनेश मिश्र ने कहा कि हमारे यहां सामाजिक और जातिगत स्तर पर सक्रिय पंचायतों द्वारा सामाजिक बहिष्कार के मामले लगातार सामने आते रहते हैं। ग्रामीण अंचल में ऐसी घटनाएं बहुतायत से होती है, जिसमें जाति व समाज से बाहर विवाह करने, पंचायतों के मनमाने फरमान व फैसलों को सिर झुकाकर न पालन करने, परिवार को समाज व जाति से बहिष्कार कर दिया जाता है।

उसका समाज में हुक्का पानी बंद कर दिया जाता है। डॉ. मिश्र ने कहा कि विधानसभा सत्र में सामाजिक बहिष्कार जैसी सामाजिक कुरीति के खिलाफ सक्षम कानून बनाया जाना चाहिए। डॉ. दिनेश ने कहा कि कुछ मामलों में तो स्वच्छता मित्र बनने पर तो कहीं आरटीआई लगाने पर भी समाज से बहिष्कृत कर दिया गया है।

अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति पूरे प्रदेश में 30 हजार से अधिक व्यक्ति सामाजिक बहिष्कार जैसी कुरीति के शिकार हैं। अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति सामाजिक बहिष्कार जैसी सामाजिक कुरीति के खिलाफ जनजागरण और प्रताड़ित लोगों की मदद के लिए पिछले कुछ वर्षों से लगातार कार्य कर रही है और कुछ परिवारों का बहिष्कार समाप्त करने में सफल भी हुई है, पर बहिष्कृत परिवारों की संख्या बहुत अधिक है और उनका पुनः समाज में शामिल होना, पुनर्वास के लिए एक सक्षम कानून की आवश्यकता है।

सभी जनप्रतिनिधियों को लिखा पत्र
समिति सभी जनप्रतिनिधियों को पत्र लिखकर आगामी विधानसभा सत्र में सामाजिक बहिष्कार के खिलाफ कानून बनाने की मांग की है। इसी परिप्रेक्ष्य में ज्ञात हो, महाराष्ट्र विधानसभा में सभी सदस्यों ने सामाजिक बहिष्कार प्रतिषेध अधिनियम के संबंध में महत्वपूर्ण कानून को बिना किसी विरोध के सर्वसम्मति से 11 अप्रैल 2016 को पारित कर दिया और 20 जून 2017 को राष्ट्रपति द्वारा मंजूरी मिलने के बाद 3 जुलाई 2017 से पूरे महाराष्ट्र में लागू कर दिया गय।

व्यावहारिक हर काम से वंचित
इसी प्रकार हमारे प्रदेश में भी सामाजिक बहिष्कार प्रतिषेध अधिनियम की महती आवश्यकता महसूस की जा रही है। डॉ. मिश्र ने कहा कि सामाजिक बहिष्कार होने से दंडित व्यक्ति व उसका परिवार गांव में बड़ी मुश्किल में पड़ जाता है। पूरे गांव-समाज में कोई भी व्यक्ति न ही उससे किसी प्रकार का व्यवहार रखता है। यहां तक उसे गांव में किराना सामान खरीदने, मजदूरी करने, नाई, शादी-ब्याह जैसे सामाजिक सार्वजनिक कार्यक्रमों में भी शामिल होने से वंचित कर दिया जाता है।

बहिष्कार के कारण उठा लेते हैं घातक कदम
डॉ. मिश्र ने आगे कहा कि सामाजिक बहिष्कार के कारण विभिन्न स्थानों से आत्महत्या, हत्या, प्रताडऩा व पलायन की खबरें लगातार समाचार पत्रों में आती रहती है। इस संबंध में अब तक कोई सक्षम कानून नहीं बन पाया है। सामाजिक बहिष्कार के मामलों के आंकड़े को लेकर नेशनलक्राइम रिकार्ड ब्यूरो, राज्य सरकार, पुलिस विभाग के पास कोई अब तक रिकार्ड जानकारी नहीं है।

होती है ऐसी घटनाएं
ऐसी जानकारी सूचना के अधिकार के अंतर्गत प्राप्त हुई है, जबकि ऐसी घटनाएं लगातार होती है। इस संबंध में सामाजिक बहिष्कार प्रतिषेध अधिनियम को विधानसभा सत्र में सामाजिक बहिष्कार के संबंध में सक्षम कानून बनाने के लिए पहल करें ताकि अनेक प्रताडि़तों को न्याय मिल सके।

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