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गणेश चतुर्थी पर चिंतन आलेख ‘रोते गणेश को हंसाएं कैसे’

विगत कई सप्ताह से गणेश स्थापना हेतु मंच एवं पण्डाल के निर्माण एवं सजावट कार्य में जुटे-जुटे थक कर चूर-चूर हो गया था। गणेश जी की स्थापना के उपरान्त थकान मिटाने के लिए घोड़ा बेचकर गहरी नींद में सो रहा था। तभी रात्रि दो बजे के करीब किसी के सिसक-सिसक कर रोने की आवाज से मेरी नींद उचट गई।मैं आंख मलते रोने की आवाज की दिशा में चल पड़ा। आगे जाकर मैंने देखा कि हमारे पण्डाल में विराजे गणेशजी रो रहे हैं। रो-रोकर उन्होंने अपनी आंख और सूंड़ को लाल कर डाला है।

मैं हड़बड़ाते हुए अपने कंधे में रखे गमछे से उनके आंसू पोंछते हुए पूछ पड़ा – क्या हो गया गणेशजी, इतना कलप-कलप कर क्यों रो रहे हैं ? मेरा सवाल सुनकर वे बोले – वर्ष में एक बार ही तो मुझे तुम लोग बुलाते हो । इसके बावजूद ढंग से मेरा मान-सम्मान भी नहीं कर सकते। इसका पूर्वानुमान लगाते हुए माता पार्वती, भ्राता कार्तिक एवं पिता श्री शंकर ने मुझे समझा बुझा कर भेजा है कि भूलोक में आजकल तरह-तरह की बीमारियां फैल रही हैं,संभल कर रहना।ज्यादाउलटा-सीधा मत खा-पी लेना।

गणेशजी की बात सुनकर मुझे हंसी आ गई । अपनी हंसी को नियंत्रित करते हुए मैंने पूछा – क्यों गणेश जी, अभी तो हमने आपको कुछ खास खिलाया-पिलाया नहीं है, फिर आपको किस बात की पीड़ा है ? मेरे प्रश्न का जवाब देने के पहले नाक-भौं सिकोड़ते हुए उन्होने अपनी सूंड़ पर अपने हाथ को रखते हुए कहा – यहां बदबू के मारे मेरा सिर फटा जा रहा है। तुम लोगों ने मुझे बजबजाती गंदी नाली और कचरा के डिब्बे के करीब बिठा रखा है। एक तो सड़ते-गलते कचरे की बदबू ऊपर से बड़े-बड़े मच्छरों का हमला। मेरे लिए तो दुबले को दो आषाढ़ जैसी स्थिति हो गई है। तुम लोग ऐसी गंदगी में रहते हो, इसीलिए तुम लोगों को मलेरिया, हैजा, डेंगू ,कोरोना जैसी व्याधियां घेरती हैं।

इतना कहते-कहते गणेशजी ओक-ओक करने लगे मानो उन्हें जम कर मितली आ रही हो। जैसे-तैसे अपने आपको संभालते हुए उन्होंने आगे कहा- मैंने तो सुना था कि देश में स्वच्छता अभियान चल रहा हैं पर यहां की गंदगी को देखकर तो ऐसा कुछ लगता नहीं। ये देखों कहते हुए उन्होंने अपने सूंड़ के ऊपर बैठे खून चूसते एक मोटे मच्छर को भगाते हुए कहा-तुम लोग तो खुद मच्छरदानी के अंदर पंखा,कूलर, एसी की हवा खाते आराम फरमा रहे हो और मुझे उमस भरी गर्मी के संग चिपचिपाते पसीना में छोड़ दिये हो।

गणेशजी की पीड़ा हरने के लिए मैंने उन्हें फुसलाने की कोशिश की। उन्हें बताया कि आप चिन्ता न करें। आपके लिए भी हमने बिजली का कनेक्शन ले रखा है। आपके पण्डाल को रंग-बिरंगे झालर से सजाने की तैयारी हमने की……….। मेरी बात को बीच में ही काटते हुए गणेश जी चिंघाड़ते बोले – सरासर झूठ बोल रहे हो, मुझे सब पता है कि तुम लोगों ने बिजली का कनेक्शन लेने के बजाय बिजली चोरी की व्यवस्था की हैं। अरे थोड़ी भी तो शर्म करो। पूजा-पाठ जैसे पवित्र कार्य भी क्या तुम बिजली चोरी से करोगे ? ऐसे में तो तुम पुण्य के बजाय पाप के भागीदार बनोंगे और ऐसे पवित्र स्थान पर तो पड़े-पड़े मैं परेशान होने के साथ ही साथ ऊब जाऊंगा।

गणेश जी और कुछ सुना पाते, उसके पहले ही उन्हें टोकते हुए मैंने कहा – लम्बोदर महाराज, थोड़ा धीरज तो धरिए। हम आपको बोर होने नहीं देंगे। आपके मनोरंजन हेतु हमने गाने-बजाने की भी जोरदार व्यवस्था की हैं। नये-नये गाने बजायेंगे, सुन कर आपका दिल गदगद हो जायेगा। इतना सुनते ही गणेशजी के मुरझाये चेहरे पर मुस्कान की एक लकीर दोैड़ पड़ी। वे पूछ पड़े – अरे वाह, तो क्या इस बार मेरे लिए नया-नया भजन तैयार किये हो ? मैं गणेशजी के इस सवाल पर आपा खो बैठा और गुर्राते हुए बोला – क्या उटपंटाग बात करते हैं गणेशा ! जमाना बदल गया हैं, आजकल भजन-कीर्तन सुनने वाले ढूंढने पर भी नहीं मिलते। जहां देखो वहां पूजा पण्डाल में फिल्मी गीत बजते रहते हैं ……………चार बोतल वोडका, काम मेरा रोज का। मुन्नी बदनाम हुई। बीड़ी जलाई ले बलमवा जिगर म बड़ी आग है आदि. आदि. ।

मेरे मुंह से ऐसे-ऐसे गानों के बोल सुन कर उन्होंने अपने बड़े-बड़े कानों में उंगली ठूंसते हुए कहा – अरे बाप रे, ऐसे गाने तो मैंने अपने बाप-दादा के जमाने में भी नहीं सुना हैं। इन्हें सुन कर तो मेरे प्राण पखेरू उड़ जायेंगे। तुम लोगों ने ऐसे बेढंगे, कानफोड़ू गाना-बजाना से ही ध्वनि प्रदूषण को बढ़ावा दे रखा है, साथ ही साथ संस्कृति को भी विकृत करते जा रहे हो। अरे जरा सोचो लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक जी ने आजादी की लड़ाई के समय नवयुवकों को एकता के सूत्र में बांधने के लिए गणेश स्थापना प्रथा की शुरूआत की थी। इस प्रथा के उद्देश्य को ही तुम लोगों ने तहस-नहस कर डाला।

आगे गणेशजी लंबी आहे भरते हुए बोले – इसी तरह बदलते वक्त के साथ मिट्टी से मूर्ति निर्माण करने के बजाय तुम लोगों ने प्लास्टर ऑफ पेरिस की मूर्ति बनाना और उसे देशी प्राकृतिक रंगों के बजाय हानिकारक रसायनिक रंगों सें रंगने की गलत परम्परा को निर्मित किये हो। ऐसी मूर्तियों को नदी, तालाब में विसर्जित करके तुम लोग जल प्रदूषण को भी बढ़ाने जैसा घृणित कार्य कर रहे हो। इससे न केवल मानव जाति अपितु मेंढ़क, मछली जैसे अनगिनत निरीह जीवों का जीवन भी खतरे में पड़ता जा रहा है। ऐसी स्थिति में भला तुम्हें सुख की प्राप्ति कैसे हो सकती है?

गणेशजी की बातें मेरे दिल-दिमाग को झकझोर गई। मेरी आंखें खुल गई। अपनी नासमझी और गलती का अहसास करते हुए मैं गणेश जी के चरणों पर जा गिरा और लिपट कर बोला – आपकी बात सौ फीसदी सत्य हैं। अब ऐसी गलती को बढ़ावा देने के बजाय आपके बताये मार्ग का अनुसरण करेंगे। यह प्रण आपकी सौगन्ध लेते दुहराता हूं। मेरा प्रण सुन कर गणेशजी की आंखों में बहते दुख के आंसू खुशी के आंसू में बदल गये। उन्होंने अपना सूंड़ उठा कर खुशी व्यक्त करते हुए ‘‘सुखी भवः’’ का आशीष दिया। फिर हम दोनों चैन की नींद में सो गये।

*विजय मिश्रा ‘‘अमित’’*

पूर्वअति महाप्रबंधक (जन) एम8सेक्टर 2,अग्रोहा सोसाइटी, पोस्ट आफिस-सुंदर नगर, रायपुर, (छत्तीसगढ़) मोबाईल- 98931 23310

 

 

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