पूरे पचहत्तर साल हो गए, देश के नेता देश को हिंदुत्व के मकड़जाल से बाहर नहीं निकलने दे रहे है । राजनीति घूम-फिरकर हिंदुत्व पर अटक जाती है। सब अपने-अपने ढंग से हिंदुत्व की परिभाषा गढ़ते आ रहे हैं लेकिन दरअसल हिंदुत्व क्या है इससे किसी का कोई लेना-देना नहीं है। आज भारत की जरूरत हिंदुत्व है या कुछ और ये तय कर पाना कठिन हो गया है। नेताओं की समस्त ऊर्जा हिंदुत्व को परिभाषित करने में लग रही है।
भाजपा और आरएसएस हिन्दुस्तान को हिन्दू राष्ट्र बनाने का संकल्प लिए घूम रहे हैं और कांग्रेस तथा दूसरे अन्य दल अपने ढंग से हिंदुत्व की परिभाषा कर रहे है। कांग्रेस ने अपनी हाल की जयपुर रैली में भाजपा और संघ के हिंदुत्व की बखिया उधेड़ी तो प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी हिंदुत्व की स्थापना का शंखनाद करने के लिए काशी विश्वनाथ की शरण में हैं लेकिन हिंदुत्व का कहीं कोई पता नहीं है । हिंदुत्व किसी कौन में दुबका ये तमाशे देख रहा है ।हिंदुत्व की परिभाषा राजनीतिक है या धार्मिक ये समझने के लिए कोई तैयार नहीं है। हिंदुत्व को कागज की तलवार बनाकर लड़ रहे सियासी दलों को हिंदुत्व से खिलवाड़ करने की आजादी किसने दी है आखिर ?
हिंदुत्व को लेकर मेरी समझ संघ और भाजपा के विद्वानों जितनी नहीं है, लेकिन मुझे हमेशा पढ़ाया गया कि हिन्दुस्तान जिस हिन्दू शब्द से बना है वो एक भौगोलिक सीमा को रेखांकित करता है। इस भौगोलिक और बाद में राजनितिक सीमा का हिन्दू धर्म से कोई लेना देना नहीं है । हकीकत तो ये है कि हिन्दू धर्म है ही नहीं। धर्म तो सनातन है, और सबका अपना-अपना है, उन सबका का है जो हिन्दुस्तान की भौगोलिक सीमा में रहते हैं और हिन्दू कहलाने का हक रखते हैं, फिर चाहे वे मुसलमान हों, सिख हों, जैन हों, बौद्ध हों या ईसाई।
हिंदुत्व की वकालत करने वालों को हमारी नहीं वीर सावरकर की बात मानना चाहिए । उन्हें सावरकर को पढ़ना और समझना चाहिए की हिंदुत्व दरअसल है क्या ? सावरकर को पढ़ने के बाद तो मुझे लगता है कि देश में सावरकर से पहले कोई हिंदुत्व को जानता ही न था । शायद स्वामी विवेकानंद भी हिन्तुत्व से अनभिज्ञ रहे होंगे।सावरकर ने ही देश में एक तरह से हिंदुत्व को भौगोलिक से धार्मिक बनाने की कोशिश की और अब भाजपा और संघ उसी भौगोलिक सीमा को धार्मिक बताकर भारत को एक धर्मी बनाने पर आमादा है। कभी मस्जिद तोड़कर तो कभी काशी का पुनरुद्धार करके।
हम जिस हिन्दुस्तान में रहते हैं उस हिन्दुस्तान में रहने वाले हर धर्मालावलम्बी को हिन्दू मानने से कतराते हैं। भाजपा और संघ की परिकल्पना हिंदुत्व को लेकर जो है उस्मने किसी दुसरे धर्म को जगह नहीं है । ये दोनों संतान धर्म को हिन्दुस्तान में रहने वाली तमाम जनता का धर्म बनाने का दिवा स्वप्न पाले बैठे हैं और यही समाज में कड़वाहट की जड़ भी है।भाजपा यदि इस जड़ को सींचती है तो दूसरे दल इस जड़ को उखाड़ फेंकना चाहते हैं। गरीबी,बेरोजगारी,बीमारी और इंसानियत से किसी का कोई लेना देना नहीं है।
मै बेहद कम पढ़ा-लिखा व्यक्ति हूँ ,लेकिन मैंने जितना भी पढ़ा है उसके मुताबिक़ हिन्दू शब्द का ऐतिहासिक अर्थ समय के साथ विकसित हुआ है। प्रथम सहस्त्राब्दी ईसा पूर्व में सिंधु की भूमि के लिए फारसी और ग्रीक संदर्भों के साथ, मध्ययुगीन युग के ग्रंथों के माध्यम से , हिन्दू शब्द सिंधु (इंडस) नदी के चारों ओर या उसके पार भारतीय उपमहाद्वीप में रहने वाले लोगों के लिए भौगोलिक रूप में, मानव-जाति के अनुसार सांस्कृतिक पहचानकर्ता के रूप में प्रयुक्त होने लगा था। 16 वीं शताब्दी तक, हिंदुत्व का जो अर्थ था वो बाद में बदलने लगा और इसे विकृत करने का अभियान आज भी जारी है। इस शब्द ने उपमहाद्वीप के उन निवासियों का उल्लेख करना शुरू कर दिया, जो कि तुर्की या मुस्लिम नहीं थे।
हमारे तथाकथित हिंदूवादी नेता देश के क़ानून और संविधान में यकीन रखते हैं लेकिन इसी संविधान के तहत बने सर्वोच्च न्यायालय की बात उन्हें नहीं जंचती। माननीय उच्चतम न्यायालय ने अपने 1995 के एक निर्णय में कहा ‘हिन्दुत्व का मतलब भारतीयकरण है और उसे मजहब या पंथ जैसा नहीं माना जाना चाहिए। भाजपा और संघ सर्वोच्च न्यायालय से भी इतर हैं। ये दोनों कहते हैं की हिंदुत्व कुछ और है। रैली जयपुर में हो या काशी में महंगाई पर हो या सिंचाई पर लेकिन सभी में बात हिंदुत्व की ही हो रही है। राहुल हों या नरेंद्र मोदी सब देश की जनता को हिंदुत्व समझाने में लगे हैं। इनसे पहले हिंदुत्व की वकालत करने वाले लोग जैसे देश में थे ही नहीं।
आप मानकर चलिए कि जब तक ये देश इस तथाकथित हिंदुत्व के मकड़जाल में उलझा रहेगा तब तक इस देश में विकास दोयम दर्जे की चीज बनी रहेगी । लोग चिकित्सा, स्वास्थ्य, शिक्षा, बेरोजगारी, गरीबी और गैर बराबरी जैसे मुद्दों को हल नहीं कर पायेगा। सियासत चाहती भी नहीं है की बुनियादी मुद्दे हल हों। यदि सियासत मुद्दों को हल करने लगी तो बेचारे हिंदुत्व का क्या होगा ? अब हर बार मतदान करने से पहले मतदाता को ही समझना होगा की उसकी पहली जरूरत धर्म है या कुछ और ? धर्म इस देश में कभी खतरे में नहीं रहा, खतरे में तो देश की सियासत रहती है और यही सियासत अपने वजूद के लिए धर्म खतरे में हैं का हौवा खड़ा करती है ये हौवा काशी से कोलकाता तक और जयपुर से जगम्मनपुर तक है। इससे सावधान रहिये।
कांग्रेस शुरू से अलग तरह की पार्टी रही है। वह सभी धर्मों के बीच संतुलन साधकर चली है। वहीं, बीजेपी की राजनीति विशुद्ध रूप से हिंदू आधारित है। यह उसका मजबूत पक्ष है और कांग्रेस शायद ही इस मोर्चे पर उसे टक्कर दे पाए। कांग्रेस के लिए बुनियादी मुद्दों और लोगों की समस्याओं को उठाना ही जरूरी है। उसे बीजेपी बनने की न तो जरूरत है न उसे कोशिश करनी चाहिए।ये बात और है कि बीजेपी जरूर धीरे-धीरे कांग्रेस जैसी होती जा रही हैं। बीजेपी को यदि हिंदुत्व की इतनी ही ज्यादा चिंता है तो उसे होने तमाम कार्यकर्ता दुनिया के दुसरे देशों में धर्म प्रचारक बनाकर भेजना चाहिए और सके लिए संघ की माली इमदाद भी करना चाहिए। @ राकेश अचल
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मै आप सभी को आपकी स्वीकृति लिए बिना आलेख भेजता हूँ इसके लिए क्षमाप्रार्थी हू। मुझे लगता है कि लिखते रहना चाहिए ,जरूरी नहीं कि जो लिखा जा रहा है उससे आप सभी सहमत हों। लेखों पर आपकी प्रतिक्रियाएं मिलती हैं तो स्वाभाविक रूप से अच्छा लगता है ,लेकिन जो मौन रहते हैं वे भी महत्वपूर्ण मित्र हैं। निवेदन सिर्फ इतना है कि आप मेरी धृष्टता को अन्यथा न लें, यदि आपके वाटसअप के लिए मेरे लेख अनुपयोगी हों तो मुझे बाधित [ब्लाक] करने के बजाय मुझे सूचित कर दें तो आपको आलेख भेजना बंद कर दिया जायेगा। @ राकेश अचल
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