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कही-सुनी (18 SEPT-2022) : भूपेश बघेल जमीनी नब्ज टटोलने में जुटे

रवि भोई की कलम से


मुख्यमंत्री भूपेश बघेल भेंट –मुलाक़ात कार्यक्रम के बहाने फिर मैदान में उतर आए हैं। इस बार वे रायगढ़ जिले के दौरे पर रहे। मुख्यमंत्री भेंट -मुलाक़ात के जरिए जमीनी हकीकत टटोल रहे हैं। इसके लिए वे एक-एक विधानसभा के छोटे से छोटे गांव में भी पहुँच जा रहे हैं। बच्चे -बुजुर्ग, नेता-कार्यकर्ता और समाज के प्रतिनिधियों सभी से मिल रहे हैं और उनकी बातें सुन रहे हैं। मुख्यमंत्री हर एक विधानसभा क्षेत्र में रात्रि विश्राम भी कर रहे हैं। लगता है छत्तीसगढ़ी, छतीसगढियावाद और स्थानीय संस्कृति के घोड़े पर सवार होकर भूपेश बघेल राज्य में भाजपा से दो-दो हाथ करने निकल पड़े हैं। छत्तीसगढ़ के स्कूलों में बच्चों को अब छत्तीसगढ़ी भी पढाई जाएगी। यह बात तो साफ है कि 2023 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस और भाजपा के बीच ही मुख्य मुकाबला होना है। आम आदमी पार्टी ,जोगी कांग्रेस और बसपा अपनी उपस्थिति दर्ज कराने के अलावा कुछ करते नहीं दिख रहे हैं। 2023 जीतने के लिए भाजपा ने प्रदेश प्रभारी, प्रदेश अध्यक्ष और नेता प्रतिपक्ष तो बदले ही, प्रदेश कार्यकारिणी में आमूल -चूल बदलाव कर दिया। पार्टी पुराने और जमे-जमाए चेहरे की जगह युवा और नए लोगों को सामने ले आई है। वहीँ कांग्रेस को सत्ता में वापस लाने का सारा दारोमदार मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के कंधे पर ही है। इस कारण फील्ड में उनकी सक्रियता और आक्रामकता जरुरी है।

क्या पुनिया की जगह लेंगे रंधावा ?

कहा जा रहा है छत्तीसगढ़ भाजपा में बदलाव की हवा का झोंका कांग्रेस को भी लगने वाला है। चर्चा है कि कांग्रेस के प्रभारी महासचिव पी. एल. पुनिया जल्द बदले जाएंगे। श्री पुनिया की जगह पंजाब के कांग्रेस नेता सुखजिंदर सिंह रंधावा को छत्तीसगढ़ का प्रभारी महासचिव बनाए जाने की खबर है। पी. एल. पुनिया 2018 के विधानसभा चुनाव के पहले से छत्तीसगढ़ के प्रभारी महासचिव हैं। पुनिया की जगह नए को कमान देने की खबर तो बहुत दिनों से उड़ रही है। बदलाव पर अमलीजामा कब पहनाया जाता है, यह देखना है ? कांग्रेस अब पहले वाली कांग्रेस रही नहीं। अब उसे फैसला लेने से पहले कई बार सोचना और मंथन करना पड़ रहा है।

दो अनार, दो बीमार, फिर भी लफड़ा

कहावत है एक अनार सौ बीमार, पर छत्तीसगढ़ में एक ऐसा विभाग है, जहां अनार भी दो हैं और खाने वाले भी दो ही हैं, पर कीमत चुकाने को लेकर मामला लटक गया है। कहते हैं कुछ महीने पहले कैबिनेट ने आवाजाही सुगम करने वाले एक विभाग में शीर्ष स्तर पर दो पद सृजित करने को हरी झंडी दी, तो प्रस्ताव तैयार कर मंत्री जी को फाइल भेजी गई। वैसे इस विभाग में शीर्ष स्तर पर प्रमोशन में कई पेंच भी है। पेंच को दूर करने में मेहनत तो लगेगी ही। अब सवाल खड़ा हो गया है कि मेहनताना दे कौन ? इस बात पर गाडी अटक गई है। कहा जाता है कि अनार खाने वाला एक अफसर 2030 तक मलाईदार पद पर रहेंगे , दूसरे उनसे पहले रिटायर्ड हो जाएंगे। अब देखते हैं सरकार क्या कदम उठाती है ? विभाग में बड़े पद के दावेदार रहे एक अफसर रिटायरमेंट के बाद भी लार टपकाना नहीं छोड़ रहे हैं। इससे भी पेंच फंस रहा है।

समधी के चलते निपट गए नेताजी

कहते हैं भाजपा के एक बड़े नेता समधी से संबंधों के चलते अरुण साव की टीम से बाहर हो गए और एक जूनियर को उनकी जगह बैठा दिया गया। भाजपा के ये नेता पुराने होने के साथ वजनदार भी हैं। अब तक पार्टी के लिए जी-जान लगाने वाले नेता जी को पूरी तरह बाहर का रास्ता ही दिखा दिया गया। कहते हैं नेताजी का अपने समधी जी के साथ धंधे-पानी का भी रिश्ता है, लेकिन समधी जी का एक राजनीतिक दल से जुड़ाव नेताजी को महंगा पड़ गया। वैसे अरुण साव की टीम से कई पुराने चेहरे गायब हैं और चिरपरिचित नामों का भी सफाया कर दिया गया है। पर भाजपा के कद्दावर नेता का पत्ता साफ़ हो जाने से कई लोग सकते में आ गए हैं और भविष्य को लेकर चिंतित भी होने लगे हैं।

कुंडली मारे अफसरों की विदाई

कहते हैं नगरीय प्रशासन संचालनालय में कुंडली मारे दो अफसरों की अंततः विदाई हो गई। चर्चा है कि दोनों अफसरों ने डायरेक्ट्रेट में ही नहीं कई जिलों में अपनी बेल फैलाकर जड़ें मजबूत कर ली थी। इसके चलते दोनों के पर कतरने में भी आला अफसर भय खाते थे। कहा जा रहा है कि लंबी -चौड़ी शिकायतों के बाद मंत्री डॉ शिवकुमार डेहरिया ने डायरेक्ट्रेट से दोनों की जड़ें काट दी। एक को मंत्रालय भेज दिया गया , दूसरे को जिले के काम में लगा दिया गया है। अब देखते हैं मछली की तरह पानी में रहने के आदी ये अफसर कितने दिन तक बंजर में पड़े रहते हैं।

नाफरमानी भारी पड़ी

कहते हैं एक अफसर को विशेष टास्क देकर सरगुजा भेजा गया था, लेकिन वे टास्क पूरा करने में आनाकानी करते रहे। चर्चा है कि सरकार भाजपा से जुड़े एक व्यक्ति के बारे में कुछ जानकारी चाहती थी, वे जानकरी जुटा नहीं पाए या देना नहीं चाहते थे, यह अलग बात है लेकिन सरकार की मंशा के अनुरूप काम न करने के कारण उन पर नाफरमानी का आरोप लग गया और उन्हें प्राइम पोस्टिंग से हटाकर लूप लाइन में पटक दिया गया। ये अफसर भूपेश बघेल के राज में ही कई जगह प्राइम पोस्टिंग पर तैनात रहे। अब इस सरकार में उनके पुनर्वास की कोई संभावना नहीं दिख रही है। वे करीब दो साल बाद रिटायर होंगे।

जुगाड़ वाले अफसर

चर्चा है कि आला अफसरों में आजकल जुगाड़ को लेकर मुकाबला हो रहा है। याने कौन कितना प्राइम पोस्टिंग पा सकता है। कुछ जिले से आकर सीधे विभागाध्यक्ष बन गए। कुछ को मलाईदार विभाग मिला तो कुछ को रुखा-सूखा से संतोष करना पड़ा। आजकल प्रशासनिक गलियारों में एक अफसर के दो विभाग में एचओडी बनने की बात सुर्ख़ियों में है। वह भी एक ही मंत्री के विभागों के एचओडी है। रमन सिंह की सरकार में भी कई जिलों के कलेक्टर रहने वाले ये अफसर भूपेश बघेल के जमाने में भी बड़े जिले में हाथ मारने में सफल रहे। बड़े जिले से राजधानी आए तो मलाईदार विभाग के मुखिया बन गए। कलेक्टरी छोड़कर आए एक अफसर को दो निगम का प्रबंध संचालक बनाया जाना भी चर्चा में है।

मुकेश गुप्ता बहाल

कहते हैं न अंत भला तो सब भला, ऐसा ही कुछ आईपीएस मुकेश गुप्ता के साथ हुआ। 1988 बैच के आईपीएस 30 सितंबर को रिटायर होने वाले हैं। भारत सरकार ने रिटायरमेंट के एक पखवाड़े पहले उन्हें बहाल कर दिया। फरवरी 2019 से निलंबित मुकेश गुप्ता को अब राज्य सरकार कोई जिम्मेदारी देने से तो रही, पर अब निलंबित रहते रिटायर होने का तमगा हट जाएगा। अब मुकेश गुप्ता रायपुर आकर पुलिस मुख्यालय में ज्वाइनिंग देकर रिटायर होते हैं या फिर कोई दूसरा रास्ता अपनाते हैं, इस पर लोगों की जिज्ञासा बनी है।


(-लेखक, पत्रिका समवेत सृजन के प्रबंध संपादक और स्वतंत्र पत्रकार हैं।)

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