देवउठनी एकादशी दिवाली के पर्व के बाद आती है. इस एकादशी का विशेष महत्व बताया गया है. मान्यता है कि इस एकादशी की तिथि पर भगवान विष्णु जागृत होते हैं. यानि वे शयन काल को पूर्ण करते हैं और पुन: पृथ्वी की बागडोर अपने हाथों में ले लेते हैं.
भगवान विष्णु आषाढ़ शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवशयन करते हैं, इस दिन से ही चातुर्मास आरंभ होते हैं. इस बार 1 जुलाई से चातुर्मास आरंभ हुए थे. कार्तिक शुक्ल पक्ष की एकादशी के दिन भगवान विष्णु के उठते ही चातुर्मास का समापन हो जाएगा.
पौराणिम मान्यता अनुसार देवउठनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु क्षीरसागर में 4 माह के बाद जागते हैं. जब भगवान विष्णु पाताल लोक में विश्रमा करने के लिए चले जाते हैं तो सभी प्रकार के मांगलिक कार्यों पर रोक लग जाती है. इस दौरान शादी विवाह जैसे आयोजन नहीं किए जाते हैं. देवोत्थान एकादशी पर भगवान विष्णु के जागने के बाद सभी प्रकार के मांगलिक कार्य आरंभ हो जाते हैं.
देवउठनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु की पूजा की जाती है और उनका स्वागत किया जाता है. इस दिन व्रत रखकर भगवान विष्णु की पूजा की जाती है. यह व्रत सभी प्रकार के पापों से मुक्ति दिलाता है. साथ सभी प्रकार की मनोकामनाओं को पूर्ण करता है. इस व्रत को सभी व्रतों में श्रेष्ठ माना गया है.
देवउठनी एकादशी पर सुबह उठकर स्नान करें और इसके बाद एकादशी व्रत का संकल्प लेंकर पूजा आरंभ करनी चाहिए. इस दिन घर के आंगन में भगवान विष्णु के चरणों की आकृति बनानी चाहिए. प्रसाद के रूप में कार्तिक मास में उत्पन्न होने वाले फलों का प्रयोग करना चाहिए. पूजा की थाल में फल, मिठाई, बेर, सिंघाड़े और गन्ना सजाकर भगवान भोग लगाना चाहिए. देवउठनी एकादशी की पूजा विभिन्न प्रकार से की जाती है. लेकिन इस पूजा में नियम और स्वच्छता का विशेष ध्यान रखना चाहिए. इस दिन तुलसी विवाह भी कराया जाता है.
देवउठनी एकादशी व्रत 25 नवंबर 2020 को बुधवार के दिन पड़ रही है, एकादशी तिथि 25 नवंबर को 02:42 बजे से आरंभ होगी और 26 नवंबर, 2020 को शाम 05:10 पर समाप्त होगी.