(रवि भोई की कलम से)
“धान का कटोरा” कहे जाने वाले छत्तीसगढ़ में धान को लेकर सियासी उबाल चरम पर दिखाई पड़ रहा है। धान के मसले पर भाजपा और कांग्रेस एक-दूसरे पर तीर लगातार छोड़ रहे हैं। कांग्रेस कभी धान बेचने वाले भाजपा के बड़े नेताओं की सूची जारी कर रही है, तो कभी कुछ और पैंतरा चल रही है। भाजपा धान खरीदी में अव्यवस्था और भुगतान में देरी को हथियार बनाकर 22 जनवरी को जिलों में शक्ति प्रदर्शन किया। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने 20 साल में पहली बार रिकार्ड धान खरीदी का सेहरा अपने सिर बांध लिया, तो पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने उन पर दाना-दाना धान खरीदने और समर्थन मूल्य 2500 रुपए देने का तीर छोड़कर राजनीतिक पारा चढ़ा दिया। आंकलन है कि 2018 के विधानसभा चुनाव में धान का बोनस निर्णायक रहा। बोनस न देकर भाजपा सत्ता से बाहर हो गई तो कांग्रेस बोनस को उछालकर सत्ता में आ गई। भाजपा ने 2023 में सत्ता में वापसी के लिए कमर कसनी शुरू कर दी है। वह धान और किसान की महिमा को जान गई है। दोनों ही दल धान के मुद्दे को अपने तरकश से जाने नहीं देना चाहते। साफ़ है कि आने वाले दिनों और सालों में सियासत के केंद्र में “धान” रहेगा ।
सिंहदेव की किस्मत पर ब्रेक ?
छत्तीसगढ़ के लिए कांग्रेस का ढाई-ढाई साल का फार्मूला क्या है, भगवान जाने ? पर कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष का चुनाव जून में कराने के ऐलान से एक बार फिर वरिष्ठ मंत्री टीएस सिंहदेव के भाग्य के बारे में चर्चा होने लगी है। लोग कहने लगे हैं कि अब जून तक तो टीएस सिंहदेव की किस्मत पर ब्रेक लग गया है। लोग अंदाजा लगा रहे हैं कि जून में राहुल गाँधी फिर से पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष बन जाएंगे, तब बात कुछ आगे बढ़ सकती है। याने मामला जुलाई- अगस्त तक तो खींच ही गया। भूपेश बघेल के मई में ढाई साल पूरे हो जायेंगे। कहते हैं पार्टी में ही नहीं, ब्यूरोक्रेसी में भी ढाई-ढाई साल का भूत हावी हो गया है। नई पोस्टिंग की चाहत रखने वाले अधिकारी ढाई-ढाई साल के भूत भागने का इंतजार कर रहे हैं। वैसे अप्रैल-मई में पश्चिम बंगाल, केरल, तमिलनाडु, असम और पुडुचेरी में विधानसभा चुनाव होने हैं। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल असम चुनाव कैंपेन के प्रभारी हैं। ऐसे में कांग्रेस हाईकमान किसी को हिलाने-डुलाने का काम तो शायद ही करे।
समय का खेल
भारतीय प्रशासनिक सेवा को देश की बड़ी प्रतिष्ठित और सबसे बड़े ओहदेदार सेवा कही जाती है। एक जमाना था, जब इस सेवा के अफसरों की तूती बोला करती थी और दूसरी सेवाओं के अफसर इनके सामने मुंह खोलने की हिम्मत नहीं कर पाते थे। इस सेवा के कुछ अफसरों ने प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री की हाँ में हाँ न मिलाकर पद और प्रतिष्ठा को कुर्बान कर दिया। लेकिन समय के साथ सब कुछ बदल गया। छत्तीसगढ़ में आईएएस कैडर के पोस्ट पर काबिज होकर दूसरी सेवा के लोग मलाई मार रहे हैं, वहीँ राज्य सेवा के अफसरों द्वारा आईएएस को हांके जाने की भी ख़बरें आ रही हैं। कहते हैं इसके खिलाफ एक आईएएस ने जुबान खोला तो उन्हें लूप लाइन में पटक दिया गया। एक-दो ने रीढ़ सीधी करने की कोशिश की तो उन्हें झुनझुना पकड़ा दिया गया। माहौल देखकर कुछ समय की धारा में बह चले हैं और कुछ वक्त के इंतजार में ही भला समझ रहे हैं। अब इसे क्या कहा जाए ? समय का खेल या पावर पॉलिटिक्स।
राष्ट्रीय नेत्री जिले में सिमटी
भाजपा की एक राष्ट्रीय नेता आजकल जिले में सिमट कर रह गई हैं। चर्चा है कि वे राष्ट्रीय स्तर का पद हाथ से जाने के बाद जिले में जमीन तैयार करने में लग गई हैं और समय के साथ अपने को बदलने भी लगी हैं । शहर की राजनीति से राष्ट्रीय राजनीति में छाने वाली नेता को भरोसा था कि संगठन से सरकार में आ जाएंगी। कहते हैं अपने समर्थकों और शुभचिंतकों को सरकार का हिस्सा बनने का संकेत देने भी लगीं थी , लेकिन किसानों के आंदोलन ने खेल बिगाड़ दिया। महिला नेत्री के लिए सरकार का हिस्सा बनना आसान नहीं है, एक तो उनके संरक्षक कहे जाने वाले नेता के अब अच्छे दिन नहीं रहे, फिर राज्य में उनके अपने बहुत सारे दुश्मन हैं। पर कब, किसका समय पलटी खा जाए, कौन जानता है ?
नगर पंचायत अध्यक्ष की अकलमंदी
राजनीति लोगों को बहुत कुछ सिखा देती है।कहते हैं एक कार्यक्रम में भाजपा के एक नगर पंचायत अध्यक्ष ने पार्टी को पीछे छोड़कर अपने ही गुणगान में लग गए। राज्य के छोटे से जिले के मुख्यालय के नगर पंचायत अध्यक्ष का जनवरी में एक साल पूरा हुआ। उन्होंने एक साल पूरे होने पर शहर में जगह-जगह पोस्टर तो लगवाए, साथ ही पार्टी की रैली को अपने एक साल के कार्यकाल के उपलक्ष्य में आयोजन का ढिढोरा पिटवा दिया । पार्टी ने रैली किसी और काम के लिए निकाली थी। रैली के जरिए पार्टी आम लोगों का सहयोग चाहती थी। पार्टी को कुछ सहयोग मिला या नहीं यह अलग बात है , पर जनता के बीच नगर पंचायत अध्यक्ष की तो साख बन गई। इसे कहते हैं अकलमंदी की राजनीति।
शराब विभाग के अंगद
छत्तीसगढ़ सरकार में प्रतिनियुक्ति पर आए भारत सरकार के एक अधिकारी को शराब बेचने के काम में इतना आनंद आ रहा है कि वे हर हाल में राज्य में जमे रहना चाहते हैं। कहते हैं भाजपा राज में ही केंद्र से राज्य में आए इस अधिकारी के पास शराब सप्लाई सिस्टम की कुंजी है। भाजपा शासन में एक मंत्री के खास रहे ये राज्य की शराब नीति बदलने के मास्टर माइंड भी कहे जाते हैं । आजकल शराब बेचने वाली सरकारी संस्था के प्रमुख हैं। इस संस्था में पहले यहां सीनियर आईएएस अफसरों की पदस्थापना की जाती थी। कैट से स्टे लेकर अंगद की पांव की तरह जमे इस अधिकारी को अब भाजपा के नेता ही उनकी पुरानी जगह भेजने के अभियान में लग गए हैं।
पोस्टिंग कहीं और काम कहीं
डिप्टी कलेक्टर से हाल ही में आईएएस अफसर बनने वाली रोक्तिमा यादव को सरकार ने सामान्य प्रशासन विभाग की उपसचिव बनाया हैं साथ में वन विभाग की भी जिम्मेदारी दी है। सरकार ने महीनों पहले रोक्तिमा यादव को राजभवन की जगह मंत्रालय भेजने का आदेश कर दिया है । पर कहते हैं, रोक्तिमा यादव अभी राजभवन से कार्यमुक्त नहीं हुई हैं । रोक्तिमा की जगह पदस्थ केडी कुंजाम ने अभी तक काम नहीं संभाला है। उनके पास कई चार्ज पहले से ही हैं। सरकार को क्या यह पता नहीं हैं ?
(-लेखक, पत्रिका समवेत सृजन के प्रबंध संपादक और स्वतंत्र पत्रकार हैं।)
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