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जानिए कैसे मोदी सरकार के 8 सालों के कार्यकाल में पेट्रोल 45% तो डीजल 75% हुआ महंगा

पेट्रोल डीजल के दामों में इन दिनों आग लगी है. देश के कई शहरों में पेट्रोल डीजल 100 रुपये प्रति लीटर से ज्यादा के रेट पर मिल रहा है. पर क्या आप जानते हैं 2014 में मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद से  बीते 8 साल में पेट्रोल 45 फीसदी और डीजल 75 फीसदी महंगा हो चुका है. जबकि तब 2014 लोकसभा चुनाव से पहले बीजेपी की तरफ से प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार रहते हुए चुनाव प्रचार के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तात्कालीन यूपीए सरकार को घेरने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी थी. लोगों को भरोसा दिया था कि उनकी सरकार आई तो महंगाई से निजात मिलेगी. लेकिन बीते 8 सालों से देश की जनता वादे को पूरा करने की राह देखी रही है.

8 सालों में इतना महंगा हुआ पेट्रोल डीजल 

दोनों पेट्रोलियम पदार्थों की कीमतों में बेतहाशा बढ़ोतरी के चलते आम लोगों पर हर रोज महंगाई का डाका पड़ रहा है. विपक्ष की आलोचनाओं और आम आदमी में इस बढ़ोतरी से गुस्से के बावजूद सरकारी तेल कंपनियों द्वारा हर रोज पेट्रोल डीजल के दाम बढ़ाये जा रहे हैं. 2014 में जब मोदी सरकार सत्ता में आई तब अंतरराष्ट्रीय बाजार में  कच्चे तेल के दाम 110 डॉलर बैरल पर था. तब पेट्रोल 72 रुपये प्रति लीटर के भाव पर मिल रहा था तो डीजल 55.48 रुपये प्रति लीटर के भाव पर. पेट्रोल डीजल के दामों के बीच 16 रुपये से ज्यादा का अंतर था. लेकिन अब पेट्रोल राजधानी दिल्ली में 105.41 रुपये प्रति लीटर और डीजल 96.67 रुपये प्रति लीटर के भाव पर मिल रहा है. इन आंकड़ों ये साफ है कि बीते 8 सालों में पेट्रोल 45 फीसदी तो डीजल 75 फीसदी महंगा हो चुका है.

2010 में पेट्रोल के दाम बाजार के हवाले 

सवाल उठता है कि सस्ते तेल का फायदा आम लोगों को देने के अपने ही वादे से मोदी सरकार क्यों मुकर गई.  जून 2010 में कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार ने पेट्रोल की कीमतों को डीरेग्युलेट ( Petrol Price Deregulate) करने यानी बाजार के हवाले करने का फैसला लिया था. इसके बाद से सरकारी तेल कंपनियां पेट्रोल की कीमतें तय किया करती थीं. लेकिन डीजल की कीमतों पर सरकार का नियंत्रण जारी था. डीजल को बाजार भाव से कम दाम पर बेचा जा रहा था. जिससे तेल कंपनियों को नुकसान हो रहा था.

डीरेग्युलेशन के बाद फायदा नहीं

लेकिन अक्टूबर 2014 में मोदी सरकार ने डीजल की कीमतों को भी डीरेग्युलेट करने का निर्णय ले लिया. डीजल की कीमतों को भी तय करने का अधिकार सरकारी तेल कंपनियों को सौंप दिया गया. तब इस फैसले की घोषणा करते हुये तत्कालीन वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कहा था पेट्रोल की तरह डीजल की कीमतें भी बाजार आधारित हो गई है. अंतर्राष्ट्रीय बाजार में क्रूड ऑयल के दाम बढ़ेंगे तो उपभोक्ता को ज्यादा कीमत देना होगा और दाम कम होने पर उपभोक्ता को सस्ते तेल का लाभ मिलेगा. लेकिन बड़ा सवाल उठता है कि क्या अंतर्राष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल के दाम जब भी कम हुए तो क्या इसका लाभ उपभोक्ता को मिला. इसका उत्तर है नहीं.

सस्ता कच्चा तेल, पर उपभोक्ता को फायदा नहीं

अंतर्राष्ट्रीय बाजार में जब कच्चे तेल के दाम औंधे मुंह गिर गए तब नवंबर 2014 से लेकर जनवरी 2016 के बीच मोदी सरकार ने 9 बार पेट्रोल डीजल पर एक्साइज ड्यूटी में बढ़ोतरी कर दी. पेट्रोल पर 11.77 रुपये और डीजल पर 13.47 रुपये प्रति लीटर की दर से एक्साइज ड्यूटी बढ़ा दिया गया. वहीं कोविड काल में भी मांग में कमी के चलते के कच्चे तेल के दाम गिर गये तो मार्च 2020 से लेकर अब तक केंद्र सरकार पेट्रोल पर 13 रुपये और डीजल पर 16 रुपये एक्साइज ड्यूटी और इंफ्रास्ट्रक्चर सेस के नाम पर टैक्स बढ़ा दिया. 4 नवंबर 2021 से पहले मोदी सरकार पेट्रोल पर 32.90 रुपये और डीजल पर 31.80 रुपये प्रति लीटर एक्साइज ड्यूटी वसूल रही थी. लेकिन पांच राज्यों में चुनाव को देखते हुए सरकार ने पेट्रोल पर 5 रुपये और डीजल पर 10 रुपये एक्साइज ड्यूटी घटा दिया. जनवरी 2022 से कच्चे तेल के दामों में रूस यूक्रेन युद्ध के चलते तेजी आई तो कच्चा तेल 130 डॉलर प्रति बैरल के ऊपर जा पहुंचा. जिसके बाद सरकारी तेल कंपनियां पेट्रोल डीजल के दामों में 10 रुपये प्रति लीटर की बढ़ोतरी कर चुके हैं. यानि दिवाली पर जो राहत दी गई थी सरकार ने उसे वापस ले लिया लेकिन पेट्रोल डीजल पर सरकार ने एक्साइज ड्यूटी नहीं घटाया.

पेट्रोल डीजल से बढ़ी सरकार की कमाई 

2014 मोदी सरकार जब सत्ता में आई थी तब उसने पेट्रोलियम पदार्थों पर 99,068 करोड़ रुपये एक्साइज ड्यूटी वसूला था. 2015-16 में 1,78,477 करोड़ रुपये,  2016-17 में 2.42,691 करोड़ रुपये, 2017-18 में 2.29,716 लाख करोड़ रुपये, 2018-19 में 2,14,369,  2019-20 में 2,23,057 लाख करोड़ रुपये और 2020-21 में 3.72  लाख करोड़ रुपये एक्साइज ड्यूटी वसूला.

 

 

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