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कही-सुनी (30 APRIL-23): बिना पीसीसीएफ बने ही पीसीसीएफ की कुर्सी

रवि भोई की कलम से


आखिरकार वी.श्रीनिवास राव सात अफसरों को सुपरशीट कर छत्तीसगढ़ के वन बल प्रमुख बन गए। अभी तो वे प्रभारी बने हैं। कुछ महीने बाद स्थायी हो जाएंगे। श्रीनिवास राव को वन विभाग का मुखिया बनाने की चर्चा तो राकेश चतुर्वेदी के रिटायरमेंट के बाद शुरू हो गई थी। श्रीनिवास राव को वन विभाग की कमान सौपने के लिए फाइल भी चल पड़ी थी, लेकिन एक रिटायर आईएएस अफसर के वीटो के कारण संजय शुक्ला वन बल की पारी खेल पाए। इस बार श्रीनिवास राव ने किसी का दांवपेंच नहीं चलने दिया। 1990 बैच के आईएफएस श्रीनिवास राव अभी एडिशनल पीसीसीएफ हैं। पीसीसीएफ बने भी नहीं हैं और छत्तीसगढ़ वन विभाग के मुखिया बन गए और पीसीसीएफ बने छह लोग ताकते ही रह गए। सरकार ने पीसीसीएफ अतुल शुक्ला, सुधीर अग्रवाल,आशीष कुमार भट्ट, तपेश झा, संजय ओझा,अनिल राय और एडिशनल पीसीसीएफ अनिल साहू की वरिष्ठता को नजरअंदाज कर श्रीनिवास राव को छत्तीसगढ़ के वन विभाग के मुखिया की कमान सौंप दी।

कहा जा रहा है कि कांग्रेस के एक ताकतवर राष्ट्रीय महासचिव की तगड़ी सिफारिश के कारण सरकार को श्रीनिवास राव को वन विभाग का मुखिया बनाना पड़ा। कहते हैं श्रीनिवास राव सर्वगुण संपन्न हैं , इस कारण सरकार ने चुनावी साल में उन पर दांव लगाया है। वैसे श्रीनिवास राव 2018 से वन विभाग के मलाईदार माने जाने वाले विंग कैम्पा के इंचार्ज हैं। श्रीनिवास राव के वन विभाग के मुखिया बनने के बाद कैम्पा का प्रभारी कौन बनेगा, इसकी भी चर्चा बड़ी जोरों पर है। कहते हैं अभी कैम्पा सरकार के लिए कमाऊ पूत जैसा है। चर्चा है कि पीसीसीएफ तपेश झा को वन्यप्राणी की जिम्मेदारी दे दी जाएगी। वन्यप्राणी संभाल रहे सुधीर अग्रवाल अपना पुराना काम कार्ययोजना ही देखते रहेंगे। एडिशनल पीसीसीएफ अरुण पांडे का कद बढ़ाए जाने की खबर है। श्रीनिवास राव अब अपनी टीम बनाएंगे।

सरकार के भरोसे के अफसर

2006 बैच के आईएएस अंकित आनंद अभी तक छत्तीसगढ़ विद्युत् मंडल के अध्यक्ष, मुख्यमंत्री के सचिव और ऊर्जा सचिव थे। अब सरकार ने उन्हें वित्त विभाग का भी सचिव बना दिया है। सरकार में सभी विभागों की चाबी वित्त विभाग के पास रहती है। वित्त विभाग समन्वय का भी काम करता है। विद्युत् मंडल और वित्त विभाग दोनों ही महत्वपूर्ण हैं। चुनावी साल में सरकार के फंड का मैनेजमेंट और लोगों को बिना कटौती के बिजली सप्लाई चुनौती से कम नहीं है। अब मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने भरोसा कर ही अंकित आनंद पर काम का बोझ बढ़ाया है। अब देखते हैं अंकित आनंद सभी विभागों का काम किस तरह से निपटाते हैं और दूसरे विभागों के साथ तालमेल कर चलते हैं।

टुटेजा को राहत से नई राह

आईएएस अफसर अनिल टुटेजा को ईडी की गिरफ्तारी से सुप्रीम कोर्ट की फौरी राहत मिलने से कइयों ने चैन की साँस ली। ईडी की गिरफ्तारी से भयभीत नेताओं और अफसरों को सुप्रीम कोर्ट के आदेश से नया रास्ता मिल गया है। वैसे कुछ नेता ईडी के खिलाफ कोर्ट गए थे, पर अब तक राहत अनिल टुटेजा को ही मिली है। कहते हैं अनिल टुटेजा ईडी की कार्रवाई के खिलाफ शुरू से आवाज बुलंद करते रहे और बिना डरे कोर्ट का दरवाजा खटखटाया, जिसमें उन्हें सफलता मिली। अब देखना होगा कि अनिल टुटेजा की राह पर चलते कितने लोग ईडी के खिलाफ कोर्ट जाते हैं और उन्हें कितनी सफलता मिलती है। सुप्रीम कोर्ट के रुख का ईडी की कार्रवाई पर कितना असर पड़ता है , इसका भी लोगों को इंतजार है। अनिल टुटेजा को मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के करीबी अफसरों में गिना जाता है। अनिल टुटेजा अभी उद्योग संचालक हैं और मई में रिटायर हो जाएंगे। माना जा रहा है कि रिटायरमेंट के बाद उन्हें संविदा नियुक्ति मिल जाएगी।

सपने देखते रह गए दीपक बैज

लगता है बस्तर के सांसद दीपक बैज प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष की कुर्सी का सपना देखते रह गए। कहा जा रहा है कि मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के समर्थन के बाद भी दीपक बैज कांग्रेस हाईकमान का विश्वास जीत नहीं पाए और मोहन मरकाम को गद्दी से उतार नहीं पाए। खबर है कि दीपक बैज प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बनने के लिए दिल्ली में कांग्रेस के बड़े नेताओं से मिले भी, लेकिन राज्य के एक मंत्री ने मोहन मरकाम के पक्ष में इतनी अधिक लॉबिंग की कि कांग्रेस के बड़े नेताओं ने फिलहाल तो प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष को चलने देने की राय बना ली है। अब राज्य में विधानसभा चुनाव को छह महीने बचे हैं, ऐसे में नया अध्यक्ष कितना कारगर होगा, इस पर सवाल उठ रहा है। लेकिन छत्तीसगढ़ में चुनाव के 2-3 महीने पहले भी प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बदलने की परंपरा रही है। राजनीति में शह-मात का खेल तो चलता ही रहता है।

मुख्यमंत्री भूपेश बघेल आखिर क्यों नहीं पहुंचे सागौन बंगले ?

छत्तीसगढ़ के प्रथम मुख्यमंत्री स्व. अजीत जोगी के 29 अप्रैल को आयोजित बरसी कार्यक्रम में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को मुख्य अतिथि के तौर पर शामिल होना था, पर वे नहीं पहुंचे। कहा तो गया कि अस्वस्थता के कारण वे सागौन बंगले नहीं पहुंचे। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के स्व. जोगी के बरसी कार्यक्रम में न पहुँचने के कई राजनीतिक मायने निकाले जा रहे हैं। इस कार्यक्रम में कई मंत्री शरीक हुए, पर भूपेश बघेल की मौजूदगी के मायने कुछ और होते । अब कहा जाने लगा है कि जोगी परिवार को लेकर उनके मन में अब भी कहीं न कहीं खटास तो है। जोगी परिवार ने कांग्रेस से नाता तोड़कर ही अलग पार्टी बनाई है। 2018 के चुनाव में जोगी की पार्टी ने राज्य में पांच सीटें जीती थीं। तब अजीत जोगी जीवित थे। अब 2023 में फिर विधानसभा चुनाव होने हैं। चर्चा है कि चुनाव से पहले राजनीतिक समीकरण गड़बड़ाने की संभावना के चलते मुख्यमंत्री भूपेश बघेल बरसी कार्यक्रम में सागौन बंगले  नहीं पहुंचे। ।

रविंद्र चौबे के खिलाफ नारेबाजी

राज्य के कृषि मंत्री रविंद्र चौबे का साजा विधानसभा से चोली दामन का साथ है। वे वहां से 1985 से विधायक हैं। 2013 को छोड़ दें तो वे हर चुनाव में वहां से जीत दर्ज करते रहे हैं। कहते हैं चौबे जी मंत्री बनने के बाद भी राजधानी में कम, साजा विधानसभा में अधिक समय बिताते हैं। हर तीज-त्यौहार में साजा विधानसभा में उनके कदम पड़ते ही हैं। पिछले दिनों उनके विधानसभा क्षेत्र के बिरनपुर में सांप्रदायिक तनाव का माहौल रहा। अब भी वहां निषेधाज्ञा लगा है। माहौल ख़राब होने के बाद रविंद्र चौबे अपने विधानसभा के इस इलाके में अब तक नहीं गए हैं। बताते हैं धारा 144 के हटने का इंतजार कर रहे हैं। पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह और अन्य भाजपा नेता वहां पहुँच रहे हैं। 28 अप्रैल को जब डॉ. रमन सिंह बिरनपुर जा रहे थे, तब बेमेतरा में उनसे मिलने आए कुछ लोगों ने रविंद्र चौबे के खिलाफ नारेबाजी की। अब नारेबाजी करने वाले भाजपा कार्यकर्ता हैं या आम जनता। यह तो 2023 के चुनावी नतीजे से पता चलेगा।

चुनाव के लिए भाजपा की माइक्रो तैयारी

2023 के विधानसभा चुनाव के लिए भाजपा ने माइक्रो लेवल पर तैयारी शुरू कर दी है। राज्य के बड़े-बड़े नेताओं को जमीनी हकीकत का पता लगाने फील्ड पर भेजकर रिपोर्ट मंगाई है तो छत्तीसगढ़ प्रभारी ओम माथुर भी धरातल पर उतरकर स्थिति को समझने में लगे हैं। राज्य के बड़े-बड़े नेताओं की जमीनी रिपोर्ट पर एक-दो दिन में समीक्षा होनी है, जिसके आधार पर रणनीति बनाई जाएगी। कहते हैं भाजपा चुनाव के लिए अलग-अलग टीम बनाकर काम करने वाली है। इसमें राजनीतिक टीम और टेक्निकल टीम अलग-अलग होगी। चुनाव के लिए पार्टी कार्यकर्ताओं में जोश भरने में लगी है , दूसरी तरफ कार्यकर्ता बैठकों से उबने लगे हैं। अब देखते हैं भाजपा में ईटिंग-मीटिंग- सीटिंग कब तक चलती रहती है या फिर जल्दी ही चुनावी मैदान में मोर्चा सँभालते हैं।

मई में प्रशासनिक फेरबदल

कहते हैं मई महीने में आईएएस अफसरों में फिर फेरबदल होगा। इस फेरबदल में कुछ जिलों के कलेक्टर फिर प्रभावित होंगे। परिवर्तन का असर कुछ बड़े , तो कुछ छोटे जिलों पर पड़ेगा। इसके अलावा एसपी-आईजी भी बदले जाएंगे। इस फेरबदल के फेर में आईएफएस अफसर भी आएंगे। कुछ जिलों के डीएफओ के अलावा सीएफ और सीसीएफ भी बदले जाएंगे।


(लेखक स्वतंत्र पत्रकार और पत्रिका समवेत सृजन के प्रबंध संपादक हैं।)

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