गुजरात विधानसभा चुनाव में भाजपा के सामने कई चुनौतियां हैं। पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने काफी बेहतर प्रदर्शन किया था। इस बार आम आदमी पार्टी भी गुजरात में पूरा जोर लगा रही है। हालांकि पीएम मोदी का प्रभाव भी अगामी चुनाव में देखने को मिलेगा।
गुजरात में विधानसभा चुनाव की तारीखों का ऐलान हो गया है। भाजपा, कांग्रेस, आम आदमी पार्टी समेत कई राजनीतिक दल पहले ही गुजरात चुनाव की तैयारी में जुटे हुए हैं। बेरोजगारी से लेकर भ्रष्टाचार तक के मुद्दे उठाए जा रहे हैं। हालांकि, इससे भी इनकार नहीं किया जा सकता कि अगामी गुजरात विधानसभा चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का प्रभाव देखने को मिलेगा। नरेंद्र मोदी के स्थायी प्रभाव से लेकर मुद्रास्फीति और बेरोजगारी पर असंतोष तक, गुजरात की 182 सदस्यीय विधानसभा के चुनावों में निम्न मुद्दे महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।
पीएम नरेंद्र मोदी
गुजरात विधानसभा चुनाव में भाजपा के पास नरेंद्र मोदी के रूप में एक ऐसा ट्रंप कार्ड है, जिसका लाभ यकीनन पार्टी को होगा। गुजरात पीएम नरेंद्र मोदी का गृहराज्य है। नरेंद्र मोदी 2001 से 2014 तक गुजरात के मुख्यमंत्री रहे हैं। मुख्यमंत्री की सीट छोड़े उन्हें लगभग 8 साल हो चुके हैं, लेकिन लोगों में उनकी लोकप्रियता कम नहीं हुई है। राजनीति के जानकारों का मानना है कि अगामी गुजरात विधानसभा चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भाजपा की ओर से अहम भूमिका निभाएंगे। ऐसे में पीएम मोदी की कई रैलियां गुजरात में देखने को मिल सकती हैं।
बिलकिस बानो केस में दोषियों की सजा में छूट
गुजरात को संघ परिवार की हिंदुत्व प्रयोगशाला माना जाता है। बिलकिस बानो सामूहिक दुष्कर्म और हत्या मामले में दोषियों की सजा में छूट का असर बहुसंख्यक और अल्पसंख्यक समुदायों में दिखाई देगा। मुसलमान बिलकिस बानो के लिए न्याय की मांग कर रहे हैं, जबकि हिंदुओं का एक वर्ग इस मुद्दे की अनदेखी करना चाहेगा। इस मामले में अन्य पार्टियों का क्या रुख रहेगा, इसका भी प्रभाव चुनाव पर पड़ सकता है।
समाज के कई वर्गों में असंतोष
गुजरात में 1998 के बाद से भाजपा का शासन रहा है। राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि इन 24 साल के शासन के कारण समाज के कई वर्गों में असंतोष बढ़ रहा है। राजनीतिक पर्यवेक्षक हरि देसाई कहते हैं कि लोगों का मानना है कि भाजपा के इतने वर्षों के शासन के बाद भी महंगाई, बेरोजगारी और जीवन से जुड़े बुनियादी मुद्दे अनसुलझे हैं। हालांकि, गुजरात में काफी विकास हुआ है। कई राज्यों की आर्थिक स्थिति गुजरात से खराब है, इससे कोई इनकार नहीं कर सकता है।
गुजरात के मोरबी पुल हादसा
30 अक्टूबर को मच्छू नदी पर बने मोरबी पुल के गिरने से 135 लोगों की जान चली गई। इस मामले में कुछ अधिकारियों और व्यापारियों के बीच गठजोड़ की बात भी सामने आ रही है। हालांकि, इस मामले में कई लोगों को गिरफ्तार किया जा चुका है। पीएम मोदी ने भी घटनास्थल का दौरा कर लोगों को उचित जांच का भरोसा दिलाया है। हालांकि, इस मुद्दे पर अब राजनीति भी शुरू हो गई है। गुजरात में चुनावी रैलियों के दौरान ये मुद्दों जरूर उठेगा। ऐसे में जब लोग अगली सरकार चुनने के लिए मतदान करने जाएंगे, तो यह मुद्दा लोगों के दिमाग में हावी होने की संभावना है।
पेपर लीक और सरकारी भर्ती परीक्षाओं का स्थगित होना
कोरोना महामारी के कारण विकास के कई कार्यों में बाधा हुई। कई सरकारी विभागों में भर्तियों की प्रकिया भी लंबी खिंच गई। गुजरात में भी ऐसा ही देखने को मिला। बार-बार पेपर लीक होने और सरकारी भर्ती परीक्षाओं के स्थगित होने से सरकारी नौकरी पाने के लिए मेहनत कर रहे युवा इस दौरान काफी निराश हुए। युवाओं की ये नाराजगी भी अगले विधानसभा चुनाव में देखने को मिल सकती है।
राज्य के दूर-दराज के इलाकों में बुनियादी शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी
ये देखने को मिला है कि दूर-दराज के ग्रामीण इलाकों में स्कूल की कक्षाओं का निर्माण किया जाए, तो शिक्षकों की कमी हो जाती है। यदि शिक्षकों की भर्ती की जाती है, तो शिक्षा को प्रभावित करने वाले कक्षाओं की कमी है। देश का कोई राज्य ऐसा नहीं है, जिसे इन समस्याओं का सामना नहीं करना पड़ रहा हो। प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों और डॉक्टरों की कमी भी ग्रामीण इलाकों में स्वास्थ्य सेवाओं पर प्रतिकूल प्रभाव डालती है। गुजरात विधानसभा चुनाव में ये मुद्दा भी उठ सकता है।
किसानो का आंदोलन
देश के कई राज्यों में अलग-अलग मुद्दों को लेकर विरोध प्रदर्शन चल रहा है। पिछले दो साल में हुई अधिक बारिश के कारण फसल को हुए नुकसान का मुआवजा नहीं मिलने पर किसान गुजरात के कई हिस्सों में आंदोलन कर रहे हैं। पंजाब विधानसभा चुनाव में किसान आंदोलन ने अहम भूमिका निभाई थी। ऐसे में आशंका जताई जा रही है कि गुजरात विधानसभा चुनाव में भी किसानों के मुद्दे असर डाल सकते हैं।
खराब सड़कों का मुद्दा
गुजरात पहले अपनी अच्छी सड़कों के लिए जाना जाता था। हालांकि, पिछले पांच से छह वर्षों में, राज्य सरकार और नगर निगम अच्छी सड़कों का निर्माण या पुरानी सड़कों का रखरखाव नहीं कर पाए हैं। गड्ढों वाली सड़कों की शिकायतें पूरे राज्य में आम हैं। ऐसे में खराब सड़कों का मुद्दा भी गुजरात की चुनावी रैलियों में गूंज सकता है।
बिजली के अधिक बिल पर बन सकती है मुद्दा
आम आदमी पार्टी ने मुफ्त बिजली का दांव गुजरात में भी खेल दिया है। गुजरात देश में सबसे अधिक बिजली दरों में से एक है। आम आदमी पार्टी और कांग्रेस की ओर से हर महीने 300 यूनिट मुफ्त देने के ऑफर का लोग बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं। दक्षिणी गुजरात चैंबर्स ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री ने हाल ही में वाणिज्यिक बिजली दरों में कमी की मांग करते हुए कहा कि उन्हें प्रति यूनिट 7.50 रुपये का भुगतान करना होगा, जबकि महाराष्ट्र और तेलंगाना में उनके उद्योग समकक्षों को 4 रुपये प्रति यूनिट का भुगतान करना होगा।
भूमि अधिग्रहण
गुजरात में विभिन्न सरकरी परियोजनाओं के लिए जिन किसानों व भूस्वामियों की भूमि का अधिग्रहण किया जा रहा है, उनमें असंतोष है। उदाहरण के लिए, किसानों ने अहमदाबाद और मुंबई के बीच हाई-स्पीड बुलेट ट्रेन परियोजना के लिए भूमि अधिग्रहण का विरोध किया। उन्होंने वडोदरा और मुंबई के बीच एक्सप्रेसवे परियोजना के लिए भूमि अधिग्रहण का भी विरोध किया। ये मुद्दा भी गुजरात विधानसभा चुनाव में गूंज सकता है।
गुजरात विधानसभा चुनाव में भाजपा के सामने कई चुनौतियां हैं। पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने काफी बेहतर प्रदर्शन किया था। इस बार आम आदमी पार्टी भी गुजरात में पूरा जोर लगा रही है। हालांकि, पीएम मोदी का प्रभाव भी अगामी चुनाव में देखने को मिलेगा। उल्लेखनीय है कि गुजरात में दो चरणों में विधानसभा चुनाव होने जा रहे हैं। वोटिंग 1 और 5 दिसंबर को होगी। आयोग के अनुसार गुजरात और हिमाचल प्रदेश की मतगणना 8 दिसंबर को होगी।
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