नईदिल्ली 10 अगस्त 2021. भारतीय मौसम विभाग (IMD) ने कहा है कि भारत में ला नीना की स्थिति सितंबर तक लौट सकती है. इसलिए इस बार सितंबर में जोरदार और कड़ाके की ठंड पड़ने का अनुमान है. मौसम विभाग ने कहा है कि वैश्विक मौसम से जुड़ी ला नीना की स्थिति के कारण भारत में सामान्य से ज्यादा बारिश होगी. कड़ाके की सर्दी भी पड़ सकती है. हालांकि, मौसम वैज्ञानिकों ने कहा कि इस बारे में अभी भविष्यवाणी करना जल्दबाजी होगी.
जुलाई महीने के अल नीनो दक्षिणी दोलन बुलेटिन में पुणे स्थित मौसम विभाग (IMD, Pune) ने कहा है कि वर्तमान में भूमध्यरेखीय प्रशांत क्षेत्र में तटस्थ ENSO स्थितियां प्रभावी हैं. साथ ही मानसून मिशन कपल्ड फोरकास्टिंग सिस्टम (MMCFS) का पूर्वानुमान बताता है कि तटस्थ ENSO स्थितियां जुलाई-सितंबर तक बनी रह सकती हैं.
इसके बाद अगस्त से अक्टूबर के बीच भूमध्यरेखीय प्रशांत क्षेत्र में तापमान गिरने लगेगा, जिससे ला नीना की स्थिति बनेगी. प्रशांत सागर की स्थिति को प्रभावित करने वाली ला नीना (La Nina) की स्थिति अगस्त-सितंबर 2020 से अप्रैल 2021 तक बनी थी. इसके असर से भारत में सामान्य से अधिक बारिश हुई थी. सर्दी ने भी जल्दी दस्तक दी थी. लोगों को कड़ाके की सर्दी झेलनी पड़ी थी.
नेशनल ओशियानिक एंड एटमॉस्फेरिक प्रशासन के क्लाइमेट प्रिडिक्शन सेंटर ने 8 जुलाई को कहा था कि ला नीना की स्थिति सितंबर से नवंबर के बीच बनने की संभावना है, जो कि 2021-22 की सर्दियों के दौरान प्रभावी रहेगी. भारत में सर्दी का मौसम आमतौर पर नवंबर से जनवरी के बीच होता है.
मौसम विभाग (Weather Department) के क्लाइमेट मॉनिटरिंग एंड प्रिडिक्शन ग्रुप के प्रमुख ओपी श्रीजीत ने कहा कि जो परिस्थितियां दिख रही हैं, उसमें सितंबर से ला नीना की प्रबल संभावना है. यह दक्षिण पश्चिम मानसून (South West Monsoon) के चलते हुई अच्छी बारिश से जुड़ा है. उन्होंने कहा कि बारिश के चलते बादल होने से सामान्य तापमान नीचे भी कम रहने की संभावना है. लेकिन, अभी हम ये नहीं बता सकते कि इसके चलते अगस्त और सितंबर में मानसून (Monsoon) की स्थिति पर क्या असर पड़ेगा.
आईपीसीसी की नयी रिपोर्ट में सोमवार को कहा गया कि हिंद महासागर, दूसरे महासागर की तुलना में तेजी से गर्म हो रहा है. इसके साथ ही, वैज्ञानिकों ने आगाह किया है कि जलवायु परिवर्तन के कारण भारत को लू और बाढ़ के खतरों का सामना करना पड़ेगा. समुद्र के गर्म होने से जलस्तर बढ़ेगा, जिससे तटीय क्षेत्रों और निचले इलाकों में बाढ़ का खतरा भी बढ़ेगा.
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