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आरसीपी सिंह के इस्तीफे के साथ बिहार में राजनीतिक घमासान

बिहार। आरसीपी सिंह के जदयू छोड़ने के बाद पार्टी में घमासान मचा है। आरसीपी पर पलटवार करते हुए लल्लन सिंह ने कहा कि जदयू डूबता जहाज नहीं है, यह एक नौकायन जहाज है। कुछ लोग इसे नुकसान पहुंचाने की कोशिश कर रहे हैं। नीतीश कुमार ने उन लोगों की पहचान की जो इसे नुकसान पहुंचाने की कोशिश कर रहे थे और इसे सुधारने के लिए कदम उठाए। इससे साथ ही साफ किया कि अब जेडीयू मोदी कैबिनेट में शामिल नहीं होगा।

जदयू नेता लल्लान सिंह ने कहा कि जो कहते है, जदयू डूब जाएगी। आपको पता है, जब जहाज डूबता है तो सबसे पहले कौन भागता है। वो सत्ता के साथी हैं इसलिए पार्टी को छोड़कर भाग गए। नीतीश कुमार के खिलाफ साजिश रची जा रही है। उन्हॆंने कहा कि पार्टी का का मालिक एक है, जिसका नाम नीतीश कुमार हैं। आरसीपी सिंह की पहचान नीतीश कुमार ने बनाई है।

उन्होंने कहा कि सीएम नीतीश कुमार के खिलाफ साजिश थी और इसलिए हमने (विधानसभा में) केवल 43 सीटें जीतीं लेकिन अब हम सतर्क हैं। 2020 के चुनाव में एक मॉडल चिराग पासवान के नाम से सामने आया, जबकि दूसरा वर्तमान में बनाया जा रहा है।

जदयू नेता लल्लान सिंह ने कहा कि पार्टी को केंद्रीय मंत्रिमंडल में शामिल होने की क्या जरूरत है? 2019 में ही आम सहमति पर पहुंचने के बाद सीएम नीतीश कुमार ने स्पष्ट कर दिया कि हम केंद्र सरकार में शामिल नहीं होंगे और हम इसके साथ काफी मजबूती से खड़े हैं। नीतीश कुमार के व्यक्तित्व को धूमिल करने की साजिश थी।

क्या बिहार में भाजपा के हाथ से निकल गई बाजी?
कहा जाता है कि भाजपा के बिहार से आने वाले नेता भूपेंद्र यादव पूर्व जदयू नेता आरसीपी सिंह से ज्यादा करीबी रिश्ता बनाए हुए थे। भाजपा नेता आरसीपी सिंह के अंदर एक नए ‘एकनाथ शिंदे’ की तलाश कर रहे थे, लेकिन नीतीश पूरी परिस्थिति पर नजर रखे हुए थे।

नीतीश के अगले दांव पर सबकी नजरें
बिहार में नीतीश कुमार के अगले दांव पर सबकी नजरें टिकी हुई हैं। वे बिहार की सत्ता में भाजपा के साथ बने रहते हैं, या आरजेडी के साथ एक बार फिर पुराने गठबंधन की ओर जाएंगे, इस पर अभी भी तस्वीर साफ नहीं है। अगले 48 घंटों के अंदर यह तस्वीर पूरी तरह साफ होने का अनुमान है।

भाजपा ने साध रखी है पूरी तरह चुप्पी
इन परिस्थितियों के बीच भाजपा ने पूरी तरह चुप्पी साध रखी है, तो वहीं आरजेडी, कांग्रेस, हम और लोजपा (रामविलास) अपने-अपने विधायकों के साथ भविष्य को लेकर बैठकें कर रहे हैं, लेकिन भाजपा नेताओं ने इस मामले पर जिस तरह चुप्पी साध रखी है, अनुमान लगाया जा रहा है कि बाजी उसके हाथ से निकल चुकी है और नीतीश कुमार ने एक बार फिर खेमा बदलने का मन बना लिया है। इसका नुकसान अगले बिहार विधानसभा चुनाव में ही नहीं, उसके पहले 2024 के लोकसभा चुनावों में ही देखने को मिल सकता है।

भाजपा नेताओं में रही कसमसाहट
दरअसल, बिहार भाजपा नेताओं के मन में सरकार बनने के समय से ही यह कसमसाहट बनी हुई थी कि उनके खाते में ज्यादा सीटें होने के बाद भी उन्हें नीतीश कुमार का दबाव झेलना पड़ रहा था। पार्टी नेता चाहते थे कि अब राज्य में उनका मुख्यमंत्री होना चाहिए। लेकिन पार्टी के केंद्रीय नेताओं के इशारे पर चुप्पी साधे रखी गई, लेकिन धीरे-धीरे यह आवाज बड़ी नाराजगी में तब्दील होती गई।

जदयू-भाजपा नेताओं के बीच बढ़ता गया मनमुटाव
समय-समय पर जदयू-भाजपा नेताओं के बीच का मनमुटाव बढ़ता गया और यह बिहार विधानसभा के पटल पर भी देखा गया। इसी नाराजगी के बीच महाराष्ट्र प्रकरण के बाद बिहार भाजपा के नेताओं को लग रहा था कि यदि वे शिवसेना की तर्ज पर जदयू में तोड़फोड़ करने में कामयाब हो जाते हैं तो वे बिहार की बाजी पलट सकते हैं।

आरसीपी सिंह के अंदर ‘एकनाथ शिंदे’ की तलाश
कहा जाता है कि भाजपा के बिहार से आने वाले नेता भूपेंद्र यादव पूर्व जदयू नेता आरसीपी सिंह से ज्यादा करीबी रिश्ता बनाए हुए थे। जदयू नेताओं का आरोप है कि भाजपा नेता आरसीपी सिंह के अंदर एक नए ‘एकनाथ शिंदे’ की तलाश कर रहे थे, लेकिन मंजे नेता नीतीश कुमार बेहद सधे अंदाज में पूरी परिस्थिति पर नजर रखे हुए थे। उन्होंने समय रहते न केवल परिस्थिति को समझा और अपने अनुसार नई रणनीति बनाकर भाजपा को दबाव में लाने में भी कामयाब रहे।

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