केंद्र सरकार फंस गयी है.गुड़ खाना चाहती है और गुड़ से नेम [परहेज] भी करना चाहती है,लेकिन उससे ये नहीं हो पा रहा है.नेहरू से अदावत रखने वाली केंद्र सरकार को देश की एक बड़ी अदालत में नेहरू के राजनीतिक गुरु महात्मा गांधी की छवि को सर्वश्रेष्ठ स्वीकार कर लिया है.सरकार जब कोई बात अदालत में हलफनामे के साथ कहती है तो उस पर यकीन करना ही होता है .सरकार ने ये बात मद्रास उच्च न्यायालय में एक याचिका के बारे में अपने जबाब में कही है. याचिका भारतीय करेंसी पर महात्मा गांधी के चित्र के अलावा नेताजी सुभाष चंद्र बोस के चित्र को छापने को लेकर दायर की गयी थी.
पिछले कुछ दिनों से देश के तमाम विवादित मुद्दे अदालतों के सामने जानबूझकर लाये जाने लगे हैं.हालांकि ये गलत बात है किन्तु इस बहाने से कई बातें साफ़ होने लगीं हैं. कई बार अदालत की मंशा उजागर होती है और कई बार सरकार की .हाल ही में इलाहाबाद उच्चन्यायालय ने एक जमानत याचिका पर सुनवाई के दौरान गौमाता के बारे में एक सनसनीखेज टीप दी ही है .अदालत के एक विद्वान न्यायाधीश ने सरकार को सुझाव दिया है की गाय को राष्ट्रीय पशु घोषित किया जाए.
बहरहाल बात महात्मागांधी की चल रही है. आजादी के बाद से लगातार महात्मागांधी की टक्कर की छवि का नेता खोजने में लगे राष्ट्रीय स्वीयं सेवक संघ और फिर जनसंघ और भाजपा को अब तक कोई नायक मिला नहीं है .एकात्ममनाववाद के प्रतिपादक पंडित दीनदयाल उपाध्याय और भाजपा के हिसाब से अमर शहीद श्यामा प्रसाद मुखर्जी भी काम नहीं आये .हारकर हाल ही में भाजपा वीर सावरकर को खोजकर लायी और उसने उनका फोटो देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू को हटाकर आजादी के 75 वे समारोह के लिए बनाये गए पोस्टर पर चस्पा कर दी.
नेहरू को खारिज करने वाली सरकार की और से गठित समिति ने कहा है की भारतीय मूल्यों का प्रतिनिधित्व करने के लिए महात्मा गांधी से बेहतर छवि किसी और की हो नहीं सकती .भाजपा की समस्या ये है कि वो चाहकर भी नया इतिहास लिखते समय देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू का नाम मिटा नहीं पा रही है.दरअसल आजाद भारत का सियासी ककहरा नेहरू से ही शुरू होता है ,उसे वीर सावरकर से शुरू नहीं किया जा सकता .सावरकर नेहरू का विकल्प हो भी नहीं सकते.दोनों का अलग इतिहास है,अलग भूमिका है.
भाजपा पिछले सात साल से सत्ता में है लेकिन न बेचारी गाय को राष्ट्रीय पशु घोषित कर पा रही है और न नेहरू को देश के प्रथम प्रधानमंत्री के पद से हटा पा रही है .क्योंकि जो इतिहास में दर्ज है वो गांधी और नेहरू के नाम से ही दर्ज है .गांधी और नेहरू के प्रति इमाम घृणा के बावजूद भाजपा को इन दोनों का नाम लेना पड़ रहा है .पिछले 15 अगस्त को प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने सात साल में पहली बार नेहरू के नाम का जिक्र किया .उनके भाषण में नेहरू का नाम सुनकर सभी चौंके.खासकर भाजपा का भक्तमंडल चौंका .भक्तमंडल की समस्या ये है की जब प्रधानमंत्री जी ने नेहरू का नाम ले लिए है तो वे किस मुंह से नेहरू को गरियायें.
आपने देखा होगा की पिछले सालों में नेहरू का नाम एक मुहावरा सा बन गया है. सत्तारूढ़ दल के नेता हर नाकामी के लिए नेहरू का नाम लेने लगे थे ,जब अति हो गयी तब उन्हें नेहरू का नाम लेना बंद करना पड़ा .भारत की सियासत में ये पहला मौक़ा है की देश पर शासन करने वाले 14 वे प्रधानमंत्री पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू,तीसरी प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी और छठवें प्रधानमंत्री राजीव गांधी की समाधि पर आजतक पुष्पांजलि अर्पित करने नहीं गए.चाहे इन तीनों की जयंती हो या पुण्य तिथि.दुनिया ये सब देखती है और हंसती भी है इस सियासी घृणा को देखकर.
भाजपा का महात्मा गाँधी से लेकर राहुल गांधी तक के लिए जो घृणा अभियान चलाया जा रहा है वो छिपाने से भी नहीं छिपता .पहले अमृत महोत्स्व के पोस्टर से नेहरू को गायब करने से ये घृणा नजर आयी ,फिर खेलों के लिए दिए जाने वाले खेल रत्न पुरस्कार से राजीव गांधी का नाम हटाने से ये घृणा झलकी .घृणा की इस राजनीति के बावजूद न नेहरू जनमानस के दिलों से निकाले जा सके औरर न ही राहुल गांधी .मुझे पक्का यकीन है कि यदि देश में घृणा की राजनीति जारी रही और जब कभी देश में भाजपा विरोधी सत्ता में आये तो वे भी आज के प्रधानमंत्री का नाम जनमानस के दिलो दिमाग से नहीं निकाल पाएंगे,क्योंकि देश ने बीते सात साल में जो झेला है वो आज के महानायक को अगले दो-तीन दशक तक याद रखने के लिए काफी है.
बहरहाल बात शुरू हुई थी महात्मा गाँधी को भारतीय करेंसी पर छपने को लेकर मुमकिन है कि सरकार की छिपी कार्यसूची में ये मुद्दा हो किन्तु सरकार साहस नहीं जुटा पा रही है ऐसा करने के लिए .सरकार को अपने नायकों की प्राण प्रतिष्ठा करने से कोई रोक नहीं सकता किन्तु जो नायक देश के इतिहास का हिस्सा हो चुके हैं.
उन्हें विलोपित करने की इजाजत भी नहीं दे सकता .ककहरा ‘ अ’ से शुरू होता है तो ‘ अ ‘ से ही शुरू होगा और ‘ज्ञ ‘ पर समाप्त होगा .देश की राजनीति का ककहरा भी नेहरू से शुरू होता है तो वहीं से शुरू होगा और नरेंद्र मोदी पर समाप्त नहीं होगा. ये सतत जारी रहेगा. क्योंकि सियासत का ककहरा है ही अनंत.
गांधी की तरह करेंसी पर नेताजी की तस्वीर छपने की मांग ख़ारिज करने के लिए हमें मद्रास उच्च न्यायालय के जस्टिस ऍन किरूबाकरण और एम दुरईस्वामी का कृतज्ञ होना चाहिए कि उन्होंने याचिका को ख़ारिज करते ये भी कह दिया कि नेताजी की तरह आजादी के अनेक ख्यातिनाम और गुमनाम हीरो हैं यदि सबके लिए ऐसी मांग की जाने लगी तो फिर इसका अंत ही नहीं होगा .अदालत ने कहा कि इन दिनों जाती,धर्म और क्षेत्र के नाम पर ऐसे दावे किये जा रहे हैं.@राकेश अचल