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प्राकृतिक शुगर बनाम रिफाइन शुगर की पहचान होना है जरूरी, सेहत को पड़ सकता है भारी

sugar

शुगर आसान कार्बोहाइड्रेट का एक प्रकार है जिसे शरीरे ग्लूकोज में बदलता है और ऊर्जा के लिए इस्तेमाल करता है. लेकिन शरीर और संपूर्ण स्वास्थ्य पर प्रभाव खाई जानेवाली शुगर, या तो प्राकृतिक या रिफाइन के प्रकार पर निर्भर करता है. प्राकृतिक शुगर फल में फ्रुक्टोज के तौर पर और लैक्टोज के तौर पर डेयरी प्रोडक्ट्स जैसे दूध और पनीर में पाया जाता है. उसमें आवश्यक पोषक तत्व होते हैं जो शरीर को स्वस्थ रखते हैं और बीमारी को रोकने में मदद करते हैं. शुगर के प्राकृतिक स्रोत धीरे-धीरे पचते हैं और देर तक संतुष्ट रहने में आपकी मदद करते हैं. ये आपके मेटाबोलिज्म को स्थित रखने में भी मदद करता है.

रिफाइन शुगर में व्हाइट शुगर, ब्राउन शुगर, कोकोनट शुगर, गन्ने का शुगर, पाम शुगर, हाई फ्रुक्टोज कॉर्न सिरप होते हैं. ये सभी शुगर मुख्य रूप से पौधों से आते हैं लेकिन किसी तरह आसान शुगर, मीठी शक्ल में संशोधित या रिफाइन किया जाता है, जिसके चलते रिफाइन शुगर के सेवन में वृद्धि से मोटापा की दर में इजाफा होता है, जो कैंसर के ज्यादा खतरे से जुड़ता है.

जब शुगर को फल से निकाला जाता है, उसके साथ आनेवाला फाइबर शुगर के अवशोषण दर को धीमा कर देता है. ऐसा इसलिए क्योंकि पूरे भोजन में पाया जानेवाला प्राकृतिक शुगर उतना तेज ब्लड शुगर लेवल को नहीं बढ़ाता है जितना रिफाइन शुगर. स्ट्रॉबेरी, रसभरी और काले शतूत प्राकृतिक शुगर में सबसे नीचे होते हैं, जबकि ड्राई फ्रूट्स, केला और आम में सबसे ज्यादा शुगर होता है. फल का जूस भी शुगर में अत्यधिक होता है, इसलिए उसके बजाए पूरा फल को चुनाव करें. यहां तक कि अगर कोई कैलोरी की समान मात्रा पूरे फल और जूस से हासिल करता है, तब भी मेटाबोलिक का प्रभाव बहुत अलग होता है. इस तरह, जूस भी पूरे अनाज के मुकाबले कमोबेश सोडा जैसा ही है.

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