(रवि भोई की कलम से)
कांग्रेस ने खैरागढ़ में पार्टी प्रत्याशी की जीत के 24 घंटे के भीतर खैरागढ़ को जिला बनाने का वादा किया है, तो दूसरी तरफ सारंगढ़,सक्ती,मनेंद्रगढ़ और मानपुर-मोहला को जिला बनाने पर अदालती ब्रेक लग गया है। कहते हैं सारंगढ़ और मनेंद्रगढ़ के लोग जिला गठन के कुछ मुद्दों को लेकर छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट पहुँच गए हैं। यहां के लोग जिले के एरिया को लेकर आपत्ति करते अदालत पहुंच गए हैं।
कहा जा रहा है कि हाईकोर्ट ने लोगों की आपत्तियों के निराकरण के बाद ही जिलों के गठन का फरमान दिया है। कोर्ट के निर्देश पर छत्तीसगढ़ सरकार आपत्तियों के निराकरण में लगी है। उम्मीद है कि अप्रैल में आपत्तियों का निराकरण कर हाईकोर्ट को जानकारी दे दी जाएगी। हाईकोर्ट की हरीझंडी के बाद नए जिलों के गठन की प्रक्रिया शुरू होगी।
मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने 15 अगस्त 2021 को मनेंद्रगढ़, मानपुर-मोहला, सक्ती और सारंगढ़-बिलाईगढ़ जिला बनाने की घोषणा की थी।
भूपेश बघेल का मास्टर स्ट्रोक
कहा जा रहा है कांग्रेस प्रत्याशी की जीत के साथ ही खैरागढ़ को जिला बनाने का घोषणापत्र जारी करवाकर मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने उपचुनाव का रुख ही बदल दिया। कहते हैं नगरीय निकाय चुनाव के वक्त भी खैरागढ़ को जिला बनाने का वादा हुआ था, तब गंभीरता से नहीं लिया गया। उपचुनाव प्रतिष्ठापूर्ण हो गया है।
भाजपा पूरी ताकत लगा रही है। राज्य के नेताओं के साथ केंद्रीय मंत्रियों और भाजपा शासित राज्य के मुख्यमंत्रियों की भागीदारी से उपचुनाव में कश्मकश बढ़ता दिखाई दे रहा है। ऐसे में सरकारी पलड़े के साथ कांग्रेस ने जिले का पासा फेंककर भाजपा के लिए बेरियर लगा दिया है। जिले के ऐलान को मुख्यमंत्री भूपेश बघेल का मास्टर स्टोक भी कहा जा रहा है। कांग्रेस को खैरागढ़ में तीसरे से पहले स्थान पर जंप मारना है, तो भाजपा को दूसरे से पहले पायदान पर पहुंचने की कोशिश करनी है। 2018 के कांग्रेस लहर में स्व. देवव्रत सिंह अपनी कश्ती किनारे लगाने में कामयाब हुए थे।
जुड़ेंगे छत्तीसगढ़ बिजली बोर्ड के तार
छत्तीसगढ़ बिजली बोर्ड की पांच कंपनियां अब तीन में सिमट जाएंगी। होल्डिंग को ट्रांसमिशन और ट्रेडिंग को डिस्ट्रीब्यूशन कंपनी में मिला दिया जाएगा। माना जा है कि पांच कंपनियां बनने से बोर्ड में शीर्ष स्तर पर पद और खर्चें दोनों ही बढ़ गए, साथ ही निचले स्तर पर काम में डुप्लीकेसी बढ़ गई।कहा जा रहा है कि फ्यूज उड़ने लगा, तब अक्ल आई। कुछ लोग बिजली बोर्ड की कंपनियों को पुनर्वास केंद्र कहने लगे थे, क्योंकि पांच में से चार कंपनियों में रिटायर्ड लोग ही प्रबंध संचालक हैं। चर्चा है कि कंपनियों के एकीकरण के प्रस्ताव पर अफसर कुंडली मारे बैठे थे , पर पिछले दिनों मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की फटकार के बाद काम में गति आई।
भारी पड़ा शिष्टाचार
कहते हैं बजट सत्र में विधायिका के एक अधिकारी होम कराते हाथ जला बैठे। चर्चा है कि विधायिका के अधिकारी शिष्टाचार का पालन करते सरकार में उच्च पद पर बैठे एक व्यक्ति के पास गए। कहा जा रहा है कि सरकार में उच्च पद पर बैठे व्यक्ति को शिष्टाचार नहीं भाया और कड़वे बोल के तीर छोड़ दिए। इससे घायल विधायिका का अफसर अपनी पीड़ा भी किसी को नहीं बता सका और उन्हें मरहम लगाने वाले भी कोई नहीं मिले।
चर्चा साड़ियों की
कहते हैं आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं और सहायिकाओं की इस बार लाटरी खुल गई, उन्हें ड्रेस कोड के तौर पर एक साथ चार-चार साड़ियां मिल गईं। यह अलग बात है उन्हें साड़ियां कितनी भा रही हैं। प्रदेश में 52 हजार आंगनबाड़ी कार्यकर्ता और सहायिकाएं हैं। उन्हें हर साल 400 मूल्य की दो -दो साड़ियां देने का प्रावधान है। कोरोना की वजह से पिछले साल उन्हें साड़ियां नहीं मिली थी। इस कारण इस साल उन्हें चार-चार साड़ियां दे दी गईं। कहा जा रहा है कि एक साथ चार-चार साड़ियों का पैकेट मिलने से चर्चा कुछ ज्यादा है।
सक्ती में दिखाई महंत ने ताकत
सक्ती के विधायक और विधानसभा अध्यक्ष डॉ. चरणदास महंत ने शुक्रवार को अपने पिता स्व. बिसाहूदास महंत की प्रतिमा अनावरण के बहाने ताकत दिखाई। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने सक्ती नगर पालिका में बिसाहूदास महंत की आदमकद प्रतिमा का अनावरण करने के साथ सक्ती ब्लाक के लिए खजाना भी खोल दिया। मुख्यमंत्री ने 226 करोड़ से अधिक के विकास कामों का ऐलान कर डॉ. चरणदास महंत का रुतबा बढ़ा दिया, वहीँ स्व. बिसाहूदास महंत की 98वीं जयंती पर आयोजित कार्यक्रम में उमड़ी भीड़ से मुख्यमंत्री भी गदगद बताए जाते हैं। सक्ती जल्द ही नया जिला बनने वाला है।
सर्व आदिवासी समाज के निशाने पर लखमा
आबकारी मंत्री कवासी लखमा सर्व आदिवासी समाज के निशाने पर बताए जाते हैं।पांच बार से लगातार विधायक कवासी छत्तीसगढ़ के आखिरी छोर में स्थित कोंटा के विधायक हैं। भाजपा की लहर में भी लखमा कोंटा सीट जीतने में सफल रहे। भूपेश बघेल मंत्रिमंडल में बस्तर इलाके से एकमात्र मंत्री हैं। पिछले दिनों सुकमा कलेक्ट्रेट पर सर्व आदिवासी समाज के धावा को इसी से जोड़कर देखा जा रहा है। कहा जा रहा है कि जिला प्रशासन सर्व आदिवासी समाज को साध लेता तो समीकरण कुछ और होता।
(-लेखक, पत्रिका समवेत सृजन के प्रबंध संपादक और स्वतंत्र पत्रकार हैं।)
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