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समलैंगिक रिश्तों की गहराई से पड़ताल करता है जया जादवानी का उपन्यास ” काया “


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रायपुर। जन संस्कृति मंच की रायपुर ईकाई द्वारा स्थानीय वृंदावन हॉल में देश की शीर्ष कथाकारों में शुमार जया जादवानी के नवीनतम उपन्यास काया ( मंजुल प्रकाशन ) का विमोचन किया गया.कार्यक्रम के प्रारंभ में शास्त्रीय संगीत की दुनिया में अपनी विशिष्ट पहचान रखने वाले वसु गंधर्व और निवेदिता शंकर ने देश के नामचीन कवियों की रचनाओं का गायन कर माहौल को संगीतमय बनाया. फिर अतिथियों द्वारा उपन्यास काया को विमोचित किया गया.



इस मौके पर लेखिका जया जादवानी ने उपन्यास की रचना प्रक्रिया के बारे में बताते हुए कहा कि वे जब भी किसी की संवेदना को घायल होते हुए देखती हैं तो उसके पक्ष में लिखने को विवश हो जाती हैं. फिलहाल हमारे समय में तृतीय जेंडर की संवेदनाओं को सबसे अधिक घायल किया जा रहा है. तृतीय जेंडर घर-परिवार के साथ-साथ सामाजिक उपेक्षा के शिकार हैं. पारिवारिक और सामाजिक उपेक्षा के शिकार लोग जीवन भर अपनी काया को लेकर भटकते रहते हैं, लेकिन हमें पूरी संवेदनशीलता के साथ यह तो समझना होगा कि उनकी काया पर सबसे पहला हक़ उनका है और वे भी एक इंसान है. उन्होंने पाठकों से अपील करते हुए उपन्यास को व्यापक संवेदनशीलता के साथ पढ़ने का आग्रह किया. लेखिका ने कहा कि प्रत्येक व्यक्ति का जीवन उसका अपना होता है और जीवनयापन के उसके अधिकार में हस्तक्षेप करने का हक किसी को नहीं है, चाहे वह उसका अपना परिवार या समाज ही क्यों ना हो.

थर्ड जेंडर के अधिकार और सम्मान के लिए लंबे समय से संघर्षरत विद्या राजपूत ने जया जादवानी के लेखन में एलजीबीटी थीम की विशिष्टता को खूबसूरती के साथ रेखांकित किया. उन्होंने कहा तृतीय जेंडर की भावनाओं और दुविधाओं को संवेदनशीलता के साथ समझने वाली जया जादवानी हिंदी की अकेली लेखिका हैं. रवि अमरानी ने कहा कि समलैंगिक रिश्तों पर लिखना जोखिम से भरा हुआ काम है. ‘काया’ की लेखिका ने उस क्षेत्र में प्रवेश किया है जहां सामाजिक वर्जना,संवेदना, जिज्ञासा, पीड़ा और सत्य- सब एक साथ चलते हैं.

वरिष्ठ कथाकार आनंद बहादुर ने जया जादवानी की अनेक कहानियों और उपन्यासों के उदाहरण के साथ उनकी लेखन-कला और रचना-प्रक्रिया का विस्तृत विश्लेषण करते हुए कहा कि जया जादवानी ने उपन्यास, कहानी, कविता लेख आदि के जरिए साहित्य की विभिन्न विधाओं में विपुल लेखन किया है. जया जादवानी जीवन के हर आयाम में संवेदनशीलता की हिमायती हैं. उन्होंने स्त्री जीवन के हर उस पक्ष को केंद्र में रखकर लेखन किया है जहां संवेदनशीलता घायल है.

अध्यक्षीय उद्बोधन में वरिष्ठ आलोचक सियाराम शर्मा ने बताया कि ईसा से कुछ वर्ष पहले यूनानी कवियित्री सप्फ़ो के समय से समलैंगिकता जैसे विषय पर लिखा गया है, मगर जया जादवानी ने इस विषय को जिस तरह से विमर्श के केंद्र में रखा है वैसा पहले नहीं हो पाया था. उपन्यास ‘काया’ पितृसत्तात्मक व्यवस्था का विरोध तो करता ही है, इसमें परिवार नामक ईकाई की तानाशाही का प्रतिरोध भी मुखर ढंग से दिखाई देता है. यह उपन्यास आज के आधुनिक जीवन, खासकर आईटी उद्योग में बड़े-बड़े पदों पर काम करने वाले युवाओं के जीवन के खोखलेपन और मूल्यह्रास का प्रमाणिक दस्तावेज है. कार्यक्रम का संचालन पत्रकार राजकुमार सोनी और आभार ज्ञापन जसम की वरिष्ठ सदस्य रूपेंद्र तिवारी ने किया.

विमोचन समारोह के मौके पर पर डाॅ. रेणु माहेश्वरी, मधु वर्मा, नीलिमा मिश्रा, सुनीता शुक्ला, वसुधा सुमन, दिलशाद सैफ़ी, डाॅ. पूनम संजू, अर्चना जैन, छाया सिंह, पप्पी देवराज, सुमेधा, श्रद्धा थवाइत, संध्या गौर, गीता शर्मा, डाॅ सोनाली देव, सरोज साहू, रज़ा हैदरी, राजेंद्र चाण्डक, प्रफुल्ल ठाकुर, समीर दीवान, प्रदीप गुप्ता, गौरव गिरिजा शुक्ला, अजय शुक्ला, मीसम हैदरी, इंद्र कुमार राठौर, सुरेश वाहने, सुखनवर हुसैन, मीर अली मीर, संजीव ख़ुदशाह, मुहम्मद मुसय्यब, जावेद नदीम नागपुरी, नरोत्तम शर्मा, मृगेंन्द्र सिंह, संजय श्याम, डी. पी. अहिरवार, राहुल, नंद कुमार कंसारी, डाॅ. एस. एस. धुर्वे, डाॅ. अश्विनी कुमार चतुर्वेदी, हरीश कोटक, सी. आर. साहू, प्रेम सोनी, नरोत्तम यादव आदि नगर के साहित्य-प्रेमी बड़ी संख्या में उपस्थित थे.

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