दिल्ली। दिल्ली हाईकोर्ट ने एक अंतरिम आदेश में बाबा रामदेव की पतंजलि आयुर्वेद को डाबर च्यवनप्राश पर निशाना साधते हुए भ्रामक विज्ञापन चलाने से रोक दिया है। अदालत ने कहा है कि पतंजलि के विज्ञापन उपभोक्ताओं को भ्रमित कर रहे हैं और डाबर की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचा सकते हैं। इस विवाद में डाबर ने पतंजलि पर आरोप लगाया था कि वह अपने विज्ञापनों के ज़रिए जानबूझकर डाबर के च्यवनप्राश को कमजोर और सामान्य दिखाकर उसकी साख को चोट पहुंचा रही है। दिल्ली हाईकोर्ट ने इस मामले में अंतरिम आदेश देते हुए पतंजलि को भविष्य में ऐसे विज्ञापन प्रसारित न करने की सख्त हिदायत दी है।
यह विवाद साल 2017 में तब शुरू हुआ था जब डाबर ने पतंजलि के खिलाफ अदालत में याचिका दाखिल की। उस वक्त कोर्ट ने भी पतंजलि को भ्रामक विज्ञापन चलाने से रोका था, क्योंकि पतंजलि के प्रचार में डाबर की प्रतिष्ठा को ठेस पहुंचाने की कोशिश देखी गई थी, जिससे बाजार में असंतुलन की संभावना थी। हालांकि, मामला ठंडा होने के बजाय दिसंबर 2024 में फिर गरमा गया। डाबर ने नई याचिका दाखिल की, जिसमें आरोप लगाया गया कि पतंजलि के विज्ञापनों में सीधे तौर पर यह दावा किया गया कि केवल पतंजलि का च्यवनप्राश ही प्राचीन आयुर्वेदिक परंपराओं के अनुसार तैयार किया गया है, जबकि अन्य ब्रांड्स को आयुर्वेद का सही ज्ञान नहीं है।
डाबर ने कोर्ट में यह भी कहा कि उनका च्यवनप्राश सभी सरकारी मानकों का पालन करता है और भारत में 60 प्रतिशत से अधिक हिस्सेदारी रखता है। वहीं, पतंजलि पर आरोप लगाया गया कि उनके विज्ञापनों में दावा किया गया कि उत्पाद में 51 जड़ी-बूटियां हैं, जबकि असल में केवल 47 ही पाई गईं। साथ ही, पतंजलि पर पारे (mercury) जैसे हानिकारक तत्वों के इस्तेमाल का भी आरोप लगा।
कोर्ट ने दी सुनवाई
दिल्ली हाईकोर्ट ने इस मामले को गंभीरता से लिया। 24 दिसंबर 2024 को पतंजलि को समन जारी कर जवाब मांगा गया। इसके बाद 30 जनवरी 2025 को सुनवाई हुई और 10 तथा 27 जनवरी को भी इस पर बहस जारी रही। अंततः कोर्ट ने अंतरिम आदेश देते हुए पतंजलि को भविष्य में इस तरह के भ्रामक और अपमानजनक विज्ञापन न चलाने की हिदायत दी।
पतंजलि का जवाब
पतंजलि की तरफ से वकील जयंत मेहता ने अदालत को बताया कि उनके विज्ञापनों में डाबर का नाम नहीं लिया गया है और केवल अपने उत्पाद की गुणवत्ता पर जोर दिया गया है। उनका कहना था कि सभी ब्रांड्स को अपनी खूबियां बताने का अधिकार है, जब तक वह सच्चाई पर आधारित हों और उपभोक्ताओं को गुमराह न करें। पतंजलि ने हवेल्स के एक मामले का उदाहरण देते हुए तर्क दिया कि तुलना करना गलत नहीं है।
फिर भी, पतंजलि के विज्ञापनों में स्वामी रामदेव के कुछ बयान सामने आए, जिसमें उन्होंने कहा था कि “जिन्हें आयुर्वेद और वेदों का ज्ञान नहीं है, वे चरक, सुश्रुत, धन्वंतरि और च्यवन ऋषि की परंपरा के अनुसार असली च्यवनप्राश नहीं बना सकते।” इस बयान से यह स्पष्ट संदेश गया कि केवल पतंजलि का च्यवनप्राश ही प्रामाणिक है और अन्य ब्रांड्स नकली या कमतर हैं।
प्रचार की तीव्रता और उपभोक्ता प्रभाव
ये विज्ञापन टीवी चैनलों और कई अखबारों में बड़े पैमाने पर दिखाए गए। डाबर के अनुसार, इन्हें तीन दिनों में लगभग 900 बार प्रसारित किया गया, जिसका उपभोक्ताओं पर गहरा प्रभाव पड़ा। डाबर ने कहा कि इस प्रचार से उनकी प्रतिष्ठा को भारी नुकसान हुआ है। यह मामला केवल दो कंपनियों के बीच का व्यावसायिक विवाद नहीं है, बल्कि यह प्रतिस्पर्धा के नैतिक पहलू और उपभोक्ता संरक्षण के दृष्टिकोण से भी बेहद महत्वपूर्ण उदाहरण है। अदालत का यह फैसला भारतीय विज्ञापन जगत में सही और पारदर्शी प्रचार की दिशा में एक मील का पत्थर साबित हो सकता है। क्या पतंजलि इस आदेश के खिलाफ आगे अपील करेगी या कोर्ट के निर्देशों का पालन करेगी, यह आने वाले समय में ही स्पष्ट होगा। फिलहाल, अदालत ने भ्रामक प्रचार पर सख्ती दिखाकर उपभोक्ताओं और कंपनियों दोनों को एक संदेश दे दिया है कि व्यापार में ईमानदारी और पारदर्शिता ही सर्वोपरि है।