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मणिपुर में फिर भड़की हिंसा: पुलिस जवान को हटाने पर मचा बवाल, दो की मौत, 30 से अधिक घायल

नेशनल न्यूज़। मणिपुर में एक बार फिर हिंसा बढ़क गई है। 400 लोगों की हथियारबंद भीड़ ने चुराचांदपुर एसपी-डीसी कार्यलायों को घेर लिया। सरकारी वाहनों में भीड़ ने आग लगा दी है। सरकारी संपत्ति के साथ तोड़फोड़ की। दरअसल, पूरी हिंसा एक पुलिस हेड कांस्टेबल को निलंबित किए जाने के कारण हुई है। पुलिस का कहना है कि झड़प में दो की मौत हो गई। वहीं, 30 से अधिक लोग घायल हो गए हैं। हालांकि, स्थिति को पुलिस और सुरक्षाबलों द्वारा काबू में कर लिया गया है।
पुलिस ने बताया कि 300-400 की संख्या में भीड़ ने एसपी कार्यालय पर पथराव किया। आरएएफ सहित अन्य सुरक्षाबलों ने स्थिति संभाल ली है। भीड़ को तितर-बितर करने के लिए आंसू गैस के गोले दागे गए। स्थिति निगरानी में है।

हथियारबंद लोगों के साथ दिखाई दिया पुलिस जवान
पूरा विवाद एक पुलिस हेड कांस्टेबल को निलंबित करने के कारण शुरू हुआ। पुलिस का कहना है कि वीडियो सामने आया था, जिसमें एक पुलिस हेड कांस्टेबल सियामलालपॉल हथियारबंद लोगों और गांव के स्वयसेवकों के साथ बैठा हुआ दिखाई दिया। इस वजह से चुराचांदपुर एसपी शिवानंद सुर्वे ने हेड कांस्टेबल को निलंबित करने के आदेश जारी किए। आदेश में कहा गया था कि अनुशासित पुलिस बल का सदस्य होने के नाते यह गंभीर अपराध है।

विभागीय जांच के आदेश
आदेश के अनुसार, चुराचांदपुर जिला पुलिस सियामलालपॉल के खिलाफ विभागीय जांच करेगी। सियामलालपॉल को अनुमति के बिना स्टेशन न छोड़ने के लिए कहा गया है। उनके वेतन और भत्ते को नियमों के अनुसार स्वीकार्य निर्वाह भत्ते तक सीमित कर दिया गया है। वीडियो 14 फरवरी का बताया जा रहा है, जो अब सोशल मीडिया पर जमकर वायरल हो रहा है।

आदिवासी संगठन ने दी चेतावनी
इंडिजिनस ट्राइबल लीडर्स फोरम (आईटीएलएफ) ने इस घटना के लिए एसपी शिवानंद सुर्वे को जिम्मेदार ठहराया है। फोरम ने कहा कि अगर एसपी निष्पक्षता से काम नहीं कर सकते तो हम उन्हें किसी भी आदिवासी क्षेत्र में रहने की अनुमति नहीं देंगे। एसपी को तुरंत पुलिस कर्मी का निलंबन रद्द करना चाहिए। एसपी को 24 घंटे के भीतर जिला छोड़ देना चाहिए। नहीं तो भविष्य में दोबारा कोई घटना होती है तो उसके जिम्मेदार एसपी ही होंगे।

जानें राज्य में क्यों हो रहा है विवाद
गौरतलब है, मैतेई समुदाय को अनुसूचित जनजाति (एसटी) का दर्जा दिए जाने की मांग के विरोध में तीन मई को पर्वतीय जिलों में ‘आदिवासी एकजुटता मार्च’ के आयोजन के बाद झड़पें शुरू हुई थीं। राज्य में तब से अब तक कम से कम 160 से अधिक लोगों की जान जा चुकी है। हिंसा में सैकड़ों लोगों की जान जा चुकी है और हजारों लोग विस्थापित हुए हैं।

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