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दंतेवाड़ा में आदिवासी विकास विभाग में करोड़ों का DMF घोटाला आया सामने ,दो पूर्व सहायक आयुक्त गिरफ्तार

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दंतेवाड़ा। छत्तीसगढ़ के आदिवासी अंचल दंतेवाड़ा जिले में बड़ा प्रशासनिक घोटाला सामने आया है। पुलिस ने आदिवासी विकास विभाग के दो पूर्व सहायक आयुक्त डॉ. आनंदजी सिंह और के.एस. मसराम को करोड़ों रुपये के DMF फंड घोटाले के मामले में गिरफ्तार कर लिया है। आरोप है कि दोनों ने विभाग के क्लर्क संजय कोडोपी के साथ मिलकर फर्जी दस्तावेज तैयार कर 45 फर्जी टेंडर निकालें और इस दौरान करोड़ों रुपये की गड़बड़ी की गई।



रायपुर और जगदलपुर से गिरफ्तारी

मामले की शिकायत मिलने के बाद दंतेवाड़ा पुलिस ने रायपुर और जगदलपुर में दबिश देकर दोनों पूर्व अधिकारियों को पकड़ा और उन्हें दंतेवाड़ा कोर्ट में पेश किया। वहीं इस मामले में निलंबित क्लर्क संजय कोडोपी अब भी फरार है और पुलिस उसकी तलाश में जुटी हुई है। कलेक्टर की जांच में खुलासा सूत्रों के मुताबिक, दंतेवाड़ा कलेक्टर कुणाल दुदावत ने आदिम जाति विभाग में बीते 5 वर्षों के DMF फंड से कराए गए कार्यों की जांच के लिए 5 सदस्यीय कमेटी गठित की थी। जांच में पाया गया कि करोड़ों रुपये के कामों के लिए निकाले गए 45 टेंडरों में भारी अनियमितताएं की गईं। रिपोर्ट सामने आते ही क्लर्क कोडोपी को तत्काल निलंबित कर दिया गया और दोनों पूर्व सहायक आयुक्तों समेत आरोपी क्लर्क के खिलाफ पुलिस कार्रवाई के निर्देश दिए गए।

पुलिस ने दर्ज किया मामला वर्तमान आयुक्त द्वारा लिखित शिकायत मिलने के बाद दंतेवाड़ा पुलिस ने आरोपियों के खिलाफ BNS की गैर-जमानती 6 धाराओं में अपराध दर्ज कर लिया। जांच अधिकारी के अनुसार, इस घोटाले की जड़ें गहरी हैं और कई अन्य लोगों की संलिप्तता से इनकार नहीं किया जा सकता। पुराने विवादों में घिरे रहे आनंदजी सिंह इस मामले में गिरफ्तार पूर्व सहायक आयुक्त डॉ. आनंदजी सिंह पहले भी विवादों में रह चुके हैं। उनके खिलाफ गीदम थाने में दुष्कर्म का मामला दर्ज हुआ था। हालांकि अदालत से उन्हें फिलहाल उस मामले में राहत मिल चुकी है। पुलिस सूत्रों का कहना है कि उस प्रकरण का संबंध भी विभागीय ठेकेदारी और लाभ लेने से जुड़ा हुआ बताया गया था।

टेंडर समिति की भूमिका पर सवाल
इस घोटाले की आंच अब टेंडर समिति तक भी पहुंच गई है। सवाल उठ रहे हैं कि जब इतने लंबे समय तक फर्जीवाड़ा होता रहा तो समिति ने उस पर कभी आपत्ति क्यों नहीं जताई। अब जांच एजेंसियां इस पहलू की गहन पड़ताल कर रही हैं कि आखिर कैसे पांच सालों तक फर्जी दस्तावेजों के आधार पर करोड़ों के टेंडर पास होते रहे। DMF फंड पर भ्रष्टाचार का साया दरअसल, डिस्ट्रिक्ट मिनरल फाउंडेशन (DMF) फंड का उद्देश्य खनिज प्रभावित क्षेत्रों में विकास कार्य करना है। लेकिन दंतेवाड़ा की इस कार्रवाई ने यह सवाल खड़ा कर दिया है कि क्या यह फंड वास्तव में जनता तक पहुंच रहा है या फिर भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ रहा है। अधिकारियों और कर्मचारियों की मिलीभगत से फर्जी टेंडर निकालकर वर्षों तक सरकारी खजाने को चूना लगाया गया। पुलिस का कहना है कि यह मामला सिर्फ दो पूर्व अधिकारियों और एक क्लर्क तक सीमित नहीं है। संभावना है कि टेंडर पास कराने में शामिल समिति के अन्य सदस्य और ठेकेदार भी इस जांच के घेरे में आ सकते हैं। फिलहाल दोनों गिरफ्तार पूर्व अधिकारियों को रिमांड पर लेने की तैयारी की जा रही है ताकि इस बड़े घोटाले की परतें खोली जा सकें।