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नाम बदलने की सनक का शिकार मप्र

राकेश अचल

सरकार के हर निर्णय का स्वागत करना सत्तारूढ़ दल की विवशता होती है। विरोध विपक्ष का जन्मसिद्ध अधिकार है।बची जनता , उसके ऊपर ये निर्णय थोपे जाते हैं। संगीत सम्राट तानसेन की जन्मस्थली ग्राम बेहट का नाम बदलने की मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की घोषणा ऐसी ही थोपी गई घोषणा है। तानसेन का मुरीद होने के कारण मै इस निर्णय का पुरजोर विरोध करता हूं।
संगीत सम्राट तानसेन जिस गांव बेसट(ग्वालियर) में जन्मे थे उसे न तो मुगलों ने बसाया और न ही उसका नामकरण किसी मुस्लिम शासक ने किया। बेहट का नाम न अश्लील है और न उसके उच्चारण में कोई बाधा है।बेहट ने खुद कभी अपना नाम बदलने की मांग नहीं की। लेकिन विधानसभा चुनाव को देखते हुए घोषणाएं करने की बीमारी के शिकार मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने बेहट का नाम बदलने की घोषणा कर दी। अब बेहट को तानसेन नगर Ω जाएगा। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को पता नहीं कि तानसेन नगर पहले से ग्वालियर में है।
सरकार ने हाल ही में तमाम शहरों , रेलवे स्टेशनों के नाम बदले हैं। नाम बदलकर सरकार समझती है कि उसने कोई बहुत बड़ा तीर मार लिया, जबकि ऐसा है नहीं। कोई गांव,शहर बड़ी मुश्किल से अपनी पहचान बनाता है।इस पहचान को मिटाने की कोशिश एक अक्षम्य अपराध है। दुर्भाग्यवश अब ये अपराध सिंगल और डबल इंजन की सरकारें रोज कर रहीं हैं।

इस देश में शताब्दियों तक राज करने वाले मुगलों और मुस्लिम शासकों को नाम बदलने की बीमारी थी। उन्होंने प्रयाग को इलाहाबाद किया। अपने नाम पर अनेक शहर और छावनियां बसा दी लेकिन बिना जरूरत ये सब नहीं किया।अंग्रेज तो जो नया ठिकाना खोजते गये उसे ही उन्होंने अपना नाम दिया, जैसे डलहौजी, डाल्टनगंज आदि। अंग्रेजी हुकूमत जानती थी कि नाम बदलने से काम और प्रकृति नहीं बदलती।
शहरों, रेल्वे स्टेशन, स्टेडियम सहित तमाम सार्वजनिक स्थानों के नाम बदलने को लेकर सियासत छिड़ी हुई है। नाम बदलने की राजनीति का गढ़ उत्तरप्रदेश है। उत्तर प्रदेश में मायावती की सरकार ने नाम बदलने का आंदोलन चलाया था,सो भाजपा भी उसी रास्ते पर चल पड़ी। बीते पांच सालों में देश के 5 राज्यों में सात शहरों के नाम बदले गए हैं। इनमें से सबसे ज्यादा शहर मप्र के हैं।
आंध्रप्रदेश ने राजमुंदरी सिटी का नाम राजामहेन्द्रवरम किया तो झारखंड ने नगर उन्तारी, टाउन का नाम श्री बंशीधर नगर कर दिया।मध्यप्रदेश में बिरसिंहपुर पाली का नाम मां बिरासिनी धाम ,होशंगाबाद का नाम नर्मदापुरम और ग्राम बाबई, का नाम माखन नगर कर दिया।
पंजाब ने श्री हरगोबिंदपुर सिटी को श्री हरगोबिंदपुर साहिब कहना शुरू कर दिया।उत्तरप्रदेश में इलाहाबाद को प्रयागराज नाम दे दिया।

मप्र सरकार ने मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के गृह जिले सीहोर के नसरूल्लागंज कस्बे का नाम बदलने की तैयारी शुरू की है। मप्र सरकार ने नसरुल्लागंज का नाम बदलकर भैरूंदा करने का प्रस्ताव केन्द्रीय गृह मंत्रालय को भेजा है। लेकिन अभी शायद केंद्र से अनापत्ति प्रमाण पत्र नहीं मिला।भोपाल के हबीबगंज रेल्वे स्टेशन का नाम बदलकर रानी कमलापति रेल्वे स्टेशन किया गया है। जबलपुर के डुमना एयरपोर्ट का नाम रानी दुर्गावती के नाम पर करने का प्रस्ताव मप्र सरकार ने केन्द्र को भेजा है। इसके अलावा भोपाल के मिंटो हॉल का नाम बदलकर कुशाभाऊ ठाकरे कन्वेंशन सेंटर किया जा चुका है।
शहरों के नाम बदलने को लेकर पिछले कई सालों से बहस छिड़ी हुई है। भाजपा के नेता शहरों के नाम बदलने की मांग कर चुके हैं। राजधानी भोपाल का नाम बदलकर भोजपाल करने को लेकर दो साल पहले चर्चा शुरू हुई थी। हालांकि कुछ महीने की बहस के बाद यह मामला ठंडे़ बस्ते में चला गया।
सरकार और नेता भूल जाते हैं कि भारत में व्यक्ति हो या स्थान उसके नामकरण का एक संस्कार होता है।नाम रखने और बदलने का फैसला सरकार किस हक से करती है, भगवान ही जाने ! सरकार के पास जब कोई काम नहीं होता तो वो नाम बदलने में जुट जाती है। सरकार की चले तो वो अब तक भोपाल को भू-पाल या भोजपाल ,जबलपुर को त्रिपुरी या जबालिपुरम,ग्वालियर को गोपांचल,विदिशा को भेलसा या विद्यावती और सीहोर को सीधापुर, ओंकारेश्वर को मांधाता,दतिया को दिलीप नगर,महेश्वर को महिष्मति नगर बना चुकी होती।

भाजपा शासन में नाम बदलो आंदोलन पूरे जोर-शोर से चल रहा है। भाजपा सरकारों ने शहरों के ही नहीं अपितु योजनाओं और पुरस्कारों के नाम तक बदल दिए। इनकी लंबी फेहरिस्त है। यहां तक कि कांग्रेस की तर्ज पर भाजपा ने भी प्रधानमंत्री के नाम पर मोटेरा स्टेडियम का नाम बदलकर नरेंद्र मोदी स्टेडियम कर दिया गया।
बहरहाल हमारी आपत्ति बेहट का नाम बदलने को लेकर है।बेहट मुगलकाल में भी था और अंग्रेजी हुकूमत में भी। तानसेन के पहले भी था और बाद में भी। इसलिए सरकार अपनी ग़लती सुधारे।वोट कबाड़ने के लिए और दूसरा ठठकर्म किया जा सकता है।
आपको बता दें कि तानसेन सोलहवीं शताब्दी में ग्वालियर से 45 किमी दूर बसे बेहट गांव में जन्मे थे। वे ब्राह्मण थे या बघेल इसको लेकर भी विवाद है, लेकिन निर्विवाद तथ्य ये है कि तानसेन अकबर के नवरत्नों में से एक थे। ग्वालियर में उनकी समाधि है।

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