रवि भोई की कलम से
छत्तीसगढ़ के स्वास्थ्य मंत्री टी एस सिंहदेव को कांग्रेस संगठन ने राज्य का उपमुख्यमंत्री बनाकर कई संदेश दे दिए हैं। एक तो साफ़ है कि 2023 का विधानसभा चुनाव कांग्रेस सामूहिक नेतृत्व में लड़ेगी और सब्र का फल मीठा होता है। 2018 में कांग्रेस भूपेश बघेल, टी एस सिंहदेव और चरणदास महंत को कमान सौंपी थी। 2023 में इन तीनों के साथ मोहन मरकाम भी फ्रंट पर होंगे। 2018 के चुनाव में फ्रंट पर न होते हुए भी ताम्रध्वज साहू मुख्यमंत्री की रेस में आगे हो गए थे, पर लड़ाकों ने बाधा डाल दी और भूपेश बघेल के सिर ताज आ गया। टी एस सिंहदेव की इच्छा मुख्यमंत्री की कुर्सी में बैठने की थी। वे अपनी इच्छा 2018 के विधानसभा चुनाव के पहले भी व्यक्त कर चुके थे और कांग्रेस के सत्ता में आने के बाद भी। कांग्रेस नेता भले ढ़ाई-ढ़ाई साल के फार्मूले को सार्वजनिक तौर पर ख़ारिज करते हैं,पर उनके जुबान पर आ ही जाता था। कहा जा रहा है कि उसी फार्मूले के तहत हाँ -ना के बीच टी एस सिंहदेव को उपमुख्यमंत्री का पद दिया गया है। टी एस सिंहदेव छत्तीसगढ़ के उपमुख्यमंत्री बनने वाले पहले नेता हैं। यह अलग बात है टी एस सिंहदेव को उपमुख्यमंत्री का दर्जा देने वाला कोई सरकारी आदेश अब तक जारी नहीं हुआ है। आमतौर पर मंत्रिमंडल के गठन और विभागों के आबंटन का विशेषाधिकार मुख्यमंत्री का होता है।
भले मुख्यमंत्री संगठन के नेताओं या हाईकमान से सलाह लेकर फैसला करते हैं। टी एस सिंहदेव का मामला कुछ उलट है। कांग्रेस के महासचिव संगठन के पत्र से टी एस सिंहदेव को उपमुख्यमंत्री बनाए जाने की जानकारी लोगों को मिली। वैसे संविधान में उपमुख्यमंत्री को कोई ख़ास अधिकार नहीं हैं,पर सिंहदेव को संगठन के पत्र के आधार पर उपमुख्यमंत्री का दर्जा मिला है, तो उसका महत्व कुछ और ही माना जा रहा है। खाटी कांग्रेसी टी एस सिंहदेव के बारे में चर्चा चल पड़ी थी कि वे भाजपा जा सकते हैं या फिर उनके परिवार का कोई सदस्य भाजपा का दामन थाम सकता है। ऐसे में कांग्रेस को सरगुजा इलाके के 14 सीटों पर खतरा मंडराने लगा था। कांग्रेस के उपमुख्यमंत्री दांव से इस चर्चा पर विराम लग गया है। नए तमगे के बाद टी एस सिंहदेव के साथ उनके समर्थकों के चेहरे खिल उठे हैं।
कांग्रेस में कार्यकारी अध्यक्ष का दांव
छत्तीसगढ़ कांग्रेस में कार्यकारी अध्यक्ष बनाए जाने की चर्चा फिर चल पडी है। 2018 के चुनाव के पहले भी पार्टी ने दो कार्यकारी अध्यक्ष बनाए थे। इसके पहले भी कार्यकारी अध्यक्ष की प्रथा रही है। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष आदिवासी अध्यक्ष हैं तो कार्यकारी अध्यक्ष सामान्य वर्ग, अनुसूचित जाति या किसी साहू नेता को बनाए जाने की खबर है। भूपेश मंत्रिमंडल में अनुसूचित जाति वर्ग से डा शिवकुमार डहरिया और रुद्रकुमार गुरु के मंत्री होने से पार्टी के लोग किसी साहू नेता को कार्यकारी अध्यक्ष बनाए जाने पर जोर दे रहे हैं। साहू समाज से ताम्रध्वज साहू मंत्री हैं, लेकिन राज्य में चुनावी गणित की दृष्टि से साहू समाज बड़ा फैक्टर है। राज्य में तकरीबन 12-14 फीसदी साहू वोटर होने से कार्यकारी अध्यक्ष के लिए साहू समाज का पलड़ा भारी हो गया है। साहू समाज से कार्यकारी अध्यक्ष के लिए धनेन्द्र साहू का नाम टाप पर बताया जाता है। धनेन्द्र साहू कांग्रेस के पुराने नेता हैं और वे प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष भी रह चुके हैं। सामान्य वर्ग से पूर्व मंत्री और विधायक सत्यनारायण शर्मा का नाम चर्चा में है। राज्य में अभी कांग्रेस के 7 ब्राम्हण विधायक हैं।
जंगल विभाग में दंगल
करीब आधे दर्जन आईएफएस अफसरों को सुपरसीड कर छत्तीसगढ़ के प्रभारी पीसीसीएफ बनाए गए वी श्रीनिवास राव के जलवे की आजकल बड़ी चर्चा हो रही है। वी श्रीनिवास राव प्रभारी पीसीसीएफ के साथ अब तक कैम्पा के चार्ज में थे। अब सरकार ने उन्हें राज्य वन अनुसंधान एवं प्रशिक्षण संस्थान का निदेशक भी बना दिया है। कहा जा रहा है 1990 बैच के आईएफएस वी श्रीनिवास राव इसी महीने पूर्णकालिक पीसीसीएफ और वन बल प्रमुख बन जाएंगे। खबर है कि 1988 बैच के आईएफएस आशीष भट्ट के 30 जून को रिटायरमेंट के पहले ही वी श्रीनिवास राव को पदोन्नत करने के लिए विभागीय पदोन्नति समिति की बैठक के लिए शासन में फाइल चल पड़ी है। 1990 बैच में श्रीनिवास राव से अनिल साहू वरिष्ठ हैं। अनिल साहू अभी पर्यटन मंडल के प्रबंध संचालक हैं। चर्चा है कि अनिल साहू भी वन विभाग में लौटना चाहते हैं। अब विभाग में पीसीसीएफ के दो पद की व्यवस्था कैसे होती है, यह देखना है। माना जा रहा है कि श्रीनिवास राव अपने प्रमोशन के लिए हर तरह की जुगाड़ बैठा ही लेंगे। वैसे श्रीनिवास राव के जंगल विभाग का मुखिया बनने के बाद शोर -शराबा कुछ ज्यादा ही बढ़ गया है और विभाग में नीचे के अफसरों में तलवारें खिंच गईं है। दो डीएफओ के वित्तीय अधिकार छीनने को लेकर विभाग में घमासान मचा हुआ है, वहीं विभाग के बड़े अफसरों में खेमेबंदी भी नजर आने लगी है।
अशोक जुनेजा पर सरकार मेहरबान
1989 बैच के आईपीएस अशोक जुनेजा छत्तीसगढ़ के पहले पुलिस अफसर होंगे, जो 60 साल की उम्र पार करने के बाद भी राज्य के डीजीपी बने रहेंगे। इसी छत्तीसगढ़ में 60 साल की उम्र के पहले ही कुछ अफसरों को सरकार ने पुलिस मुखिया के पद से बेदखल कर दिया था। किस्मत के धनी अशोक जुनेजा पहले प्रभारी डीजीपी बने, फिर अगस्त 2022 में फुलटाइम डीजीपी बनाए गए। कहते हैं 1988 बैच के आईपीएस रवि सिन्हा के राज्य में डीजीपी बनने से इंकार और डीजीपी की दौड़ में शामिल राज्य के कुछ अफसरों का ट्रैक रिकार्ड बहुत खास न होने से अशोक जुनेजा का भाग्य खुल गया। माना जा रहा है कि राज्य में ईडी के प्रकोप के बीच कांग्रेस की सरकार ने विधानसभा चुनाव के लिए अशोक जुनेजा को अपने अनुकूल पाया और सुप्रीम कोर्ट के आदेश को आधार बनाकर डीजीपी के पद पर उनकी निरंतरता बनाए रखी है। अब भाजपा के कुछ लोग अशोक जुनेजा की निरंतरता की मीसांसा में लगे हैं, देखते हैं क्या होता है।
मंत्री जयसिंह अग्रवाल का गुबार
चर्चा है कि कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे और राहुल गाँधी की मौजूदगी में 28 जून को चुनावी तैयारियों के लिए पार्टी की नई दिल्ली में हुई बैठक में मंत्री जयसिंह अग्रवाल का गुबार फूट पड़ा। मंत्री जयसिंह अग्रवाल अपने गृह जिले कोरबा के कलेक्टर और पुलिस अधीक्षक की कार्यशैली को लेकर लगातार सवाल उठाते रहते हैं। कांग्रेस के राज में ही कांग्रेस कार्यकर्ताओं को प्रशासन की प्रताड़ना उन्हें लगातार सालता रहता है। कोरबा से लगातार तीसरी बार के विधायक जयसिंह अग्रवाल के दंतेवाड़ा जिला प्रभारी रहते कांग्रेस की दंतेवाड़ा उपचुनाव में जीत हुई। इसके बाद उन्हें गोरेला-पेंड्रा-मरवाही जिला का प्रभारी बनाया गया तो मरवाही सीट भी कांग्रेस की झोली में आ गई। कहते हैं कि जयसिंह अग्रवाल ने अपनी इस उपलब्धि को भी बैठक में सभी नेताओं के सामने रखा।
छत्तीसगढ़ को मथने में लगी है भाजपा
भाजपा 2023 का विधानसभा चुनाव जीतने के लिए बैठकों और सभाओं के जरिए छत्तीसगढ़ को मथने में लगी है। प्रदेश प्रभारी ओम माथुर और अन्य नेता बस्तर से लेकर राज्य के दूसरे हिस्सों में धूल उड़ा रहे हैं। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह, राष्ट्रीय अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा और केंद्रीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह की राज्य में सभा हो चुकी है। 7 जुलाई को रायपुर में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की आम सभा प्रस्तावित है। विश्लेषकों को कहना है कि बैठकों और सभाओं में भाजपा दिख रही है ,जमीन में भाजपा नजर नहीं आ रही है। भाजपा राज्य स्तरीय मुद्दों को उछाल रही है, पर माहौल गरमा नहीं पा रही है। केंद्र सरकार के 9 साल की उपलब्धियों के गुणगान से राज्य स्तरीय मुद्दे गौण होते जा रहे हैं। कहा जा रहा है 2023 के विधानसभा चुनाव जीतने के लिए आरएसएस के कार्यकर्ता जी-जान से जुटे हैं। अलग-अलग राज्यों के कार्यकर्ताओं का जमावड़ा भी बढ़ रहा है।
लहलहाया सिंचाई विभाग
ईएनसी से लेकर सब इंजीनियर तक प्रभारी के भरोसे चल रहे जल संसाधन विभाग जैसे ही प्रमोशन के रास्ते खुले लहलहाने लगा। राज्य में सिंचाई को प्राथमिकता देने के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के लक्ष्य से जल संसाधन विभाग के बड़े अफसर सिस्टम सुधारने की नीयत से नीचे से ऊपर तक प्रमोशन का फैसला किया। विभाग के मंत्री रविंद्र चौबे और सचिव अंबलगन पी. ने सालों से अटके प्रमोशन के मामलों को गति दी। इस चक्कर में सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले के चलते साल 2000 से अटका प्रमोशन का मामला भी सुलझ गया। इस प्रकरण के कारण सहायक अभियंता, कार्यपालन अभियंता, अधीक्षण अभियंता और मुख्य अभियंता सभी की पदोन्नति रुकी थी। डेढ़-दो साल से सब इंजीनियर से सहायक अभियंता और सहायक अभियंता से कार्यपालन अभियंता का लटका प्रमोशन भी हल हो गया। प्रमोशन से इंजीनियरों के चेहरों पर रौनक तो आ ही गई , साथ में प्रभारियों के भरोसे विभाग का दाग भी मिटने लगा है।
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार और पत्रिका समवेत सृजन के प्रबंध संपादक हैं।)
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