यूं तो भगवान शिव थोड़ी सी पूजा से ही प्रसन्न हो जाते है। परंतु श्रावण मास का अपना ही विशेष महत्व है। सभी मासो मे से श्रावण मास भगवान शिव को अर्पित है। कहा जाता हैं कि भगवान शिव की श्रावण मास मे की गयी पूजा विशेष फलदायी होती हैं।
जैसा कि आप सभी जानते है कि भगवान शिव को अतिप्रिय श्रावण मास का आरंभ हो चुका है और देशभर में शिवभक्ति का माहौल बना हुआ है। सुबह से ही शिव मंदिरो में भक्तो का तांता लगा रहता हैं। शिवलिंग के दर्शन मात्र से ही भक्तजनों को समस्त सुखो की प्राप्ति होती हैं।
सावन महीने के इस पावन पर्व पर हम आपको एक ऐसे शिवलिंग के बारे मे बता रहे हैं जिसे दुनिया का सबसे विशालतम शिवलिंग होने का दावा किया गया है।
छत्तीसगढ़ राज्य की राजधानी रायपुर से महज ९१ किमी. की दूरी पर स्थित गरियाबंद जिले के एक छोटे से गाँव मरौदा के घने जंगलो के बीच स्थित यह प्राकृतिक शिवलिंग जिसे भूतेश्वर नाथ के नाम से जाना जाता हैं, विश्व का सबसे विशालकाय, प्राकृतिक( स्वयं भू) शिवलिंग है।
भूतेश्वर नाथ महादेव के नाम से प्रसिद्ध इस प्रकृति प्रदत्त शिवलिंग की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि हर साल इसका आकार नित-नित बढ़ रहा है। जो कि अपने आप मे यह सिद्ध करता है कि भगवान शिव स्वयं इस पावन धरा पर शिवलिंग के रूप मे विराजमान हैं।
शिवलिंग की यह खासियत भक्तो के लिए तो चमत्कार है, परंतु वैज्ञानिको के लिए शोध का विषय है। इस प्राकृतिक शिवलिंग की ऊचांई लगभग 18 फ़ीट व चौडाई(गोलाई)20 फ़ीट है। सरकारी विभाग द्वारा प्रतिवर्ष इस शिवलिंग की जाँच की जाती हैं। उनके अनुसार शिवलिंग प्रतिवर्ष 6 से 8 इंच तक बढ़ रही हैं।
भर्कुरा महादेव
भूतेश्वर नाथ महादेव को भकुर्रा महादेव के नाम से भी जाना जाता हैं। छत्तीसगढ़ की भाषा मे हुँकारना (आवाज़ देना) की ध्वनि को भकुर्रा कहा जाता हैं। इसलिए भूतेश्वर महादेव को भकुर्रा महादेव के नाम से भी पुकारा जाता हैं।
भूतेश्वर नाथ महादेव के पीछे भगवान शिव की प्रतिमा स्थित है, जिसमे भगवान शिव, माता पार्वती, भगवान गणेश, भगवान कार्तिक, नंदी जी के साथ विराजमान है। इस शिवलिंग मे हल्की सी दरार भी है, इसलिए इसे अर्धनारीश्वर के रूप मे पूजा जाता हैं। इस शिवलिंग का बढ़ता हुआ आकार आज भी शोध का विषय है।
भूतेश्वर नाथ महादेव का इतिहास
भूतेश्वर महादेव शिवलिंग स्वयं-भू शिवलिंग है, क्युंकी इस शिवलिंग की उत्पत्ति व स्थापना के विषय मे आज भी कोई सटीक तर्क मौजूद नहीं है। परंतु जानकारों व पूर्वजो के अनुसार कहा जाता हैं, कि इस मंदिर की खोज लगभग 30 वर्ष पहले हुई थी। जब चारो तरफ घने जंगल थे। इन घने जंगलो के बीच मौजूद एक छोटे से टीले से, आसपास के गाव वालो को किसी बैल के हुँकारने की आवाज़ आती थी। परंतु जब ग्रामीण वासियो द्वारा टीले पर जाकर देखा गया तो वहाँ न ही कोई बैल था और न ही कोई अन्य जानवर । ऐसी स्थिति को देख धीरे-धीरे ग्रामीण वासियो की आस्था उस टीले के प्रति बढ़ती गयी और उन्होंने उसे शिव का स्वरूप मानकर पूजा अर्चना आरंभ कर दी। तभी से वह छोटा सा शिवलिंग बढ़ते-बढ़ते विशालतम शिवलिंग का रूप ले चुका है। अब इसे भक्तो की आस्था कहे या भगवान का चमत्कार, तब से लेकर अब तक शिवलिंग का बढ़ना जारी है।
सावन मास मे यहाँ आपको विशेष रूप से भक्तो की भीड़ नज़र आयेगी। भक्तजन दूर- दूर से बाबा का चमत्कार देखने व दर्शन करने आते है। कावड़ियों के लिए यहाँ विशेष रूप से व्यवस्था की गयी है, इसके साथ ही साथ शिवरात्रि मे यहाँ तीन दिवसीय मेले का आयोजन किया जाता हैं। भूतेश्वर नाथ, पंच भूतो के स्वामी है और भक्तजन महाशिवरात्रि को यहाँ पहुँच कर अपने आप को काफी सौभाग्यशाली मानते हैं।